Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 85
________________ ७८ ॥८३६ ॥ ॥८३७॥ ॥८३८ ॥ ॥८३९॥ ॥८४० ॥ बप्पभट्टि - कथानक एयम्मी पत्यावे उचियं अ-हाण अणसणं काउं । आउस्स वि पज्जंतो वट्टइ ता कीरए स-हियं इय चिंतिऊण दाऊण वियडणं खामिऊण भव्वोहं । सरिउं अरिहंताई पच्चक्खिय सयलमाहारं सुहज्झाणं झायंतो ऊसासं रूंभिऊण झाणेण । परलोयं संपत्तो महवाई महाकई सूरी ता य कुमरो वि नाउं आगमणं सूरिणो समुहमिंतो । जा तट्ठाणे पत्तो तो दिट्ठो तारि103A]सावत्थो तो तं पिच्छिय डझंतमाकुलो गरुय-सोय-पूरेण । सहस त्ति धरणिवढे नीसहूं मुयइ अप्पाणं किच्छेण उट्ठिऊणं चियाए झंपं विहेउमाढत्तो । एयं पयंपमाणो को मज्झं पेच्छिही रज्जं एयं विणा वर-पहुणा तो धरिओ सयल-राय-लोएहिं । एवं कए न सोगो जायइ एयस्स तुह कुमर जइ तुम्ह अत्थि भत्ती ता अरहंतस्स कुणह चेइहरे । पट्टद्धरणं एयस्स चेल्लयाणं वरा पूया इय पन्नविओ कुमरो चियाए नियमुत्तरीयं पक्खिवइ । अन्ने वि तओ सामा103B]तमाइया तीए तो जाला अगर-बावन्नचंदण-कठेहिं तेहिं ताण वत्थेहिं । गयणंगणम्मि लग्गा देसाहितो बहु लोगो ठाणम्मि तम्मि पत्तो सोयाउलमाणसो पुणो वलिओ । एयारिसा कह पहू होहिंति एवं जंपतो ॥८४१ ॥ ॥८४२ ॥ ॥८४३ ॥ ॥८४४॥ ॥८४५ ॥ ॥८४६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114