Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 84
________________ ७७ प्रबन्ध - चतुष्टय वुक्को होही तो राय-सीहवारोवरिम्मि नरमेगं । एव कुणंतं पेच्छिय गच्छिज्ज तुमं तुरगेहिं ॥८२५ ॥ निय-माउलाण पासे पत्तो निव-मंदिरम्मि जा सूरी । [101B] ता तत्थ बहु सुहडे पेच्छइ कर-गहिय-सिय-सत्थे ॥८२६ ॥ तो नायं नो लट्ठ पुरिसं तम्मी निरुविउं चडिउं । रायगिहे तेण वि सूरिणो कया पुव्व-पडिवत्ती ॥८२७॥ पुट्ठो य किं न कुमरो समागओ भणइ चिट्ठइ पढंतो । आगच्छिस्सइ सिग्घं नरवर मह पिट्ठओ चेव ॥८२८॥ सो विय तं दट्टणं आरुहिउं वर-तुरंगमे झत्ति । गिहिय साहणमसमं माउल-पासे समणुपत्तो ॥८२९॥ तो सो विलक्ख-हियओ जाओ राया गयम्मि नायम्मि । कुमरम्मि तहा सव्वो परियणो तस्स किर मिलिओ ॥८३० ॥ पुण कंटियाए भणियं नरवर मारेसु निय-सुयं इहरा । रज्जं तुज्झ पणटुं भण [102A]इ निवो सो तओ एण्हि ॥८३१ ॥ मज्झ सयासा चलिओ कह सक्का सो निहंतुमेत्ताहे ।। सूरि-वयणाओ एही तीए भणिए निवो भणइ ॥८३२ ॥ भयवं मज्झ कुमारं तुब्भे गंतूण एत्थ आणेह । तस्स वयणेण चलिओ 'आणयणत्थं पहू तस्स ॥८३३ ॥ गच्छंतो अद्ध-पहे चिंतइ उभओ वि विसममावडियं । जइ कुमरो आणिज्जइ तो विसमा आवई तस्स ॥८३४ ॥ अह नो एयं कीरइ तो रूसइ पत्थिवो इमो तम्हा । एयं तं संप[102BJत्तं पच्छा वग्यो तडी अग्गे ॥८३५ ॥ १. आणयत्थं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114