Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 83
________________ ७६ बप्पभट्टि तेणुत्तो तह धम्मो सरणं गुरुणो य वज्जियारंभा । एवं पयंपमाणो राया तत्थेव निब्बुड्डो लोयतंरिए तम्मी सूरी सचिवाइ-लोय-परिया रिओ । दंसण- पडिवत्तीओ हिट्ठो विरहा ससोगो य - कथानक I पालइ पुहइ पज्जत्तं तणओ अम्मस्स दंदुओ राया सो उण कंटिय- वेसा-परव्वसो कुणइ नो चिंतं रज्जस्स परियणस्स य बलस्स देसस्स सत्तुवग्गस्स । एगंत - रइ-पसत्तो गयं पि कालं न याणेइ एव संकिन्न - रसं अणुहवमाणो पुरम्म संपत्तो । पढइ य विउसाण पुरो नरवइ अवसाण - कहणमिणं मा भूत्संवत्सरोऽसौ वसुशतनवतेर्मा च [100B] ऋक्षेषु चित्रा । धिग्मासं तं नभस्यं क्षयमपि च तथा शुक्लपक्षो पि यातु । संक्रान्तिर्यातु सिंहे विशतु हुतभुजं पंचमी यातु शुक्रे । गङगा-तोयाग्नि-मध्ये त्रिदिवमुपगतो यत्र नागावलोकः ' Jain Education International ॥ ८१५ ॥ ॥८१६ ॥ For Private & Personal Use Only ॥ ८१७ ॥ ॥ ८१८ ॥ ॥ ८१९ ॥ कुमरो य तस्स तणओ भोओ विज्जाण संगहं कुणइ । अह तीए निवो भणिओ तुह [101A] रज्जं गिहिही कुमरो ॥८२१ ॥ तुह परियणो विरत्तो जम्हा ता निग्गहेसु कुमरमिमं । इय तीए निवो भणिओ भणावए सूरि-समुहं ति कुमरेण समं अज्जं आगच्छह राउले निवो भइ । सूरीहि तओ निय- माणसम्मि नायं न लट्ठमिणं जमयंडे आहवणं कुमरेण समं तओ य कुमरस्स । कहिऊण करिय संकेयमेरिसं जइ निवो तुज्झ ॥८२० ॥ ॥८२२ ॥ ॥८२४ ॥ १. खा रसोई अतमां अत्यंत अशुद्ध होवाथी 'प्रभावकचरित' ना आधारे सही शुद्ध પાઠ આપ્યો છે ॥८२३ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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