Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 82
________________ ॥८०७॥ ॥८०८ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय सूरीहि तओ भणिओ नरवइ अम्हाण नेरिसो कप्पो । जं जलणम्मि जले वा पविसिय साहिज्जए अप्पा ॥८०४ ॥ ता तं कुण हिय-इटुं निय-समय-विहीए थोव-दियहेहिं । (99A] अम्हे वि करिस्सामो पच्छा तुह तो भणिओ ॥८०५ ॥ इय समओचियमम्हाण देसु उवएसमप्पणो तेण य । महुरक्खर-वाणीए सूरी तं दाउमाढत्तो ॥८०६॥ भो भो देवाणुपिया सरियव्वो होइ एत्थ पत्थावे । नीसेस-दोस-रहिओ परम-गुरू वीयरागो त्ति जस्स न मणयं पि मणं रागाइ-रिऊहिं कलुसियं रायं । सो च्चिय एत्थ सरंतो जीवाणं सरण-रहियाणं जर-जम्म-मरण-रोगाइ-दुक्ख-कल्लोल-पेल्लियाणेत्थ । सरणं सव्व[99B]ण्णु च्चिय गहीर-भव-सिंधु-बुड्डाणं ॥८०९ ॥ तह सयल-जीव-रक्खण-करणो सव्वन्नु-देसिओ धम्मो । सारीर-माणसाऽणेय-दुक्ख-तवियाण सरणं ति ॥८१० ॥ जस्स पभावा सुर-मणुयसामि-रिद्धीओ होंति हेलाए । नेव्वाण-सुहं परमं सो धम्मो राय सरणं ति ॥८११ ॥ जिण-भणिय-वयण-किरिया-कलाव-करणम्मि निच्चमुज्जुत्ता । . घर-घरिणि-लोयवावार-विरहिया साहुणो सरणं ॥८१२॥ इय जाव बहु रन्नो उवएसं देइ ताव गलिय-तमो । [100A] राया जंपइ भयवं पवंचिओ एत्तियं कालं ॥८१३ ॥ जं नो मए पवन्नो देवो धम्मो गुरू य इय-रूवो । एण्हं पि मज्झ सरणं सव्वन्नू निक्कलो देवो ॥८१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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