Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 80
________________ ७३ ॥७८२ ॥ ॥७८४॥ ॥७८५ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय तो रुटेणं भणियं ममाउ किं पुत्तओ भवे अहिगो । इय ठाणा गंतव्वं घेत्तूणिमं पा96B] इन्ना मे दिवसे दिवसे ढोयं करेइ न य पडइ कह वि पायारो । एत्थंतरम्मि जाओ दंदुय-नामस्स कुमरस्स ॥७८३॥ तणओ लक्खण-जुत्तो भोज-नामेण तं च मंचीए । धरिउं विहिओ ढोओ झड त्ति ता दिट्ठि-दंसणओ पडिओ सो पायारो तस्सामी निहणिऊण तो राया । जंपइ मए 'गढमिणं गहियं भुय-दंड-सामत्था भणियं पहाण-पुरिसेहिं राय नेवं ति जेण दिट्ठीए । तुह पोत्तस्स पडिओ पायारो खंडखंडेहिं ॥७८६॥ तस्सामी मरिऊणं [97A] जाओ तस्सेव सारपोलीए । ढंढो नाम पिसाओ सो मारइ जंतुणो णेगे जो तीए पउलीए दुपओ व्व चउप्पओ व्व नीसरइ । तं मारइ तद्दिवसे इय सोउं राइणा भणियं गहियं पि अगहियं चिय गढमेयं एय दोसओ एत्थ । एयस्स वसीकरणे होइ समत्थो परं सूरी तो आयरेण भणिओ वाया थंभेह रक्खसं एयं । पहुणा वि तहा-विहिए जाए खेमे निवो भणइ ॥७९० ॥ जं माहप्पं तुम्हाणं अत्थि अम्हाण [97B] तं पि वि न अस्थि । ता तं उत्थंभह जेण झत्ति गंतूण साहेमि ॥७९१ ॥ तो पहुणा संलवियं किं तुह एएण निच्छए विहिए । तह चेव कयं सयमेव तो निवो तीए पोलीए ॥७९२ ॥ १. गाढ० २. वायं ॥७८७॥ ॥७८८ ॥ ॥७८९ ॥ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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