Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 79
________________ ॥७७४॥ ७२ बप्पभट्टि - कथानक सिरि-बप्पहट्टि पहुणा कन्नउज-ठिएण निम्मविया । बावन्न 'पबंधा नच्चणस्स तारायणो तह य ॥७७२ ॥ चउवी[95B]सिया जिणाणं जमागहि इमा जयम्मि सुपसिद्धा । सिरि-वीरसामि-पंचासिया य एमाइ बहुयाई ॥७७३ ॥ गोविंदसूरि-पेसिय-एग-सिलोगस्स जेण किर दिना ।। अट्ठोत्तर-सय-माणा अत्था स पढिज्जए एवं तत्ती सीयली मेलावा केहा, धण उत्तावली पिउ मंद-सिणेहा । कन्नि पवित्तडी जणु जाणइ दोरा, अप्पण विरहिं जो मरइ तसु कवण निहोरा ॥७७५ ॥ अत्था टिक्का-सहिया अज्जवि एयस्स पुव-देसम्मि । वाइज्जती विउसेहिं संपया नो न ताणउत्था ॥७७६ ॥ जेण दियंबर-सीकय-महुरा-थूभं वसीकयं पयडं । वाए निज्जिणिऊणं दियंबरे गरुय-सामत्थे ॥७७७ ॥ एमाइ वीर-दंसण-पभावणेक्कल्ल-भट्ट-सूरिस्स । तस्स क[96A]हं निस्सेसं चरियं वन्नेउमम्हेहिं ॥७७८ ॥ चाइज्जइ तुच्छेहिं पभावणा-कइगुणाणुराएण । तह वि हु कहियं किं पी सेसं लोयाउ नायव्वं ॥७७९ । एत्तो भणामि सिरि-अम्मराय-सूरीण चरिय-पज्जतं । पुचि किर अम्म-रन्ना गोवगिरी-दढ-गढग्गहणे निम्विन्नेणं भणियं कह एसो भज्जिही तओ सिटुं । नेमित्तिएण तुह सुय-पुत्तेणं गिण्हियव्वमिणं . ॥७८१ । १. पवंचा २. तोरायणो ३. वट्ट ४. चरिउं ॥७८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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