Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 78
________________ ॥७६४॥ प्रबन्ध - चतुष्टय ७१ किं मुद्ध मुहा खिज्जसि जम्हा नो देइ तुट्ठिदाणमिमो । तुट्ठो वि अम्मराया पसंसई जाव नो सूरी ॥७६१ ॥ तुज्झ पुण चित्तमेयं [94B] पारद्धिप्पभिइ सुंदरं पि जणे । बहु-जीव-मारणाणुमइ-दोसओ नेय संसेइ ॥७६२॥ करुणासारो कारुणिय-वयण-विनाय-सयल-परमत्थो ।। न कयाइ वि सावज्जं पसंसई ता तुमं एत्थ ॥७६३ ॥ जइ निव-पसाय-अत्थी ता चित्तं लिहसु सम्मयं जमिह । सिरि-बप्पहट्टि पहुणो खेयं मा कुणसु एवं ति जाणिय-परमत्थेणं पडत्तयं जिणवराण तो लिहिउं । रन्नो पयंसियं राइणा वि अवलोइयं वयणं ॥७६५ ॥ पहुणो तेण वि सव्वन्नु-बिंबमवलोइऊणिमं भणियं । भो भो एसो विनाण-पयरिसो तिहुयणऽब्भहिओ [95AJइय भणियांतरमेव राइणा तुट्ठिदाणमिइ दिन्नं । एगेगस्स पडस्सा सवायलक्खो लहुं तस्स ते चिय दिन्ना पहुणो तेणावि पइट्ठिऊण पट्टविया । गुज्जरदेसे ताराउरम्मि एगो तहा बीओ। ॥७६८॥ महुराउरीए तइओ सिस्किन्नउज्ज-नयरम्मि । पढमो चिट्ठइ संपइ सिरि-अणहिल्लवाङ-नयरम्मि ॥७६९ ॥ मोढ-वसहीए सिरि-पासनाह-सामिस्स संतिओ जम्हा । ताराउरम्मि भग्गे दुल्लहराएण निय-नयरे ७७० ॥ लूडेउं आणीओ सो विय संघेण जाइओ धरिउं । जस्सऽज्ज वि पइवरिसं वइसाहे जायए जत्ता ॥७७१ ॥ १. ० मई- २. वराणं ३. विय ४. ० उज ॥७६६ ॥ ॥७६७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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