Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 76
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय ॥७४० ॥ ॥७४२ ॥ ॥७४३॥ थोऊणेवं किर जाव सूरि-पासम्मि गिण्हई दिक्खं । ता तस्स बंधवेहिं सूरी एवं तहिं भणिओ ॥७३९ ॥ एव कयम्मि अम्हं आजम्मं होही इय कलंकं । भट्ठा' एयाण वेया अणसण-भंगो उ जाओ त्ति ता तह करेह जहं अणसण-ठिओ कुणइ [92A] एस जिणधम्मं । एस कलंको तुम्हेहिं चेव रक्खिज्जए अम्हं ॥७४१ ॥ इय भणिए सूरीहिं भणिओ सो तुज्झ एत्थ पत्थावे । न हु जुज्जइ भंजेउं अणसणमिणमो जओ भणियं लोकः खल्वाधारः सर्वेषां धर्मचारिणां । यस्मात्तस्माल्लोक-विरुद्धं धर्म-विरुद्धं च संत्याज्यं ॥७४३ ॥ इय बोहिऊण तत्तो थूभ-समीवम्मि कारिओऽणसणं । पंच-नमोक्कार-परो पंचत्तं तत्थ संपत्तो पडिबोहिऊण एवं सूरी कन्नउज्जमागओ तत्तो । [92B] विनाय-वइयरेणं रन्ना पुट्ठो पहू एवं संपइ सो कत्थऽच्छइ जिण-दंसण-भाविओ महा-विउसो । बप्पइराओ पहुणा तो भणियं तत्थिमं वित्तं ॥७४६ ॥ आस्ते वा भूभृतां मूर्ध्नि दिवि वा द्योततेऽम्बुदः । मरुद्भिर्भज्यमानोऽपि स किमेति रसातलं एवं पयंपिए भणइ दिट्ठ-बहू-सत्ति-विम्हिओ राया । सच्चं चिय तुम्हाणं धम्मो अस्थि त्ति तहवेत्थ निय-धम्माओ अहयं जाओ एवंविहो पहू राया । तो सूरीहि भणियं तुह कटे तु[93AJच्छमेयं ति ॥७४९ ॥ १. भट्ठो २. भंगाओ ३. थुभ० ४. कन्नउजमा० ५. द्योतते वुदः । ६. दिट्ठि ० ॥७४४॥ ॥७४५ ॥ ॥७४६ ॥ ॥७४७॥ ॥७४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114