Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 74
________________ ६७ ॥७१८ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय इय भणिए ते पहुणा भणिया किं अवगओ इमस्सऽत्थो । तेहुत्तं बहियत्थो 'बुद्धो अब्भितरो न उणं पहुणा लवियं अभितरो इमो वइ वि अणसा90AJणं जइ हं । गिण्हामि जिणिंदमयं कह नज्जइ एरिसो अत्थो ॥७१९ ॥ पहुणा भणियं जम्हा पणाम-किण-कलुसियं तया हवइ । जइया नमणं कीरइ पुणो पुणो जिणवरिंदस्स ७२० ॥ तं पुण एव कए च्चिय हवेज्ज जइ नत्थि पच्चओ तुज्झ । ता एवं चिय पुच्छह तो पुट्ठो तेहिं तेणावि ॥७२१ ॥ एवं ती पडिवन्नं तत्तो सो उट्ठिऊण तट्ठाणा । सुर-निम्मियस्स थुभस्स वंदणत्थं गओ सहसा ॥७२२॥ ति-पयाहिणीकरेउं एवमत्येण संथुओ तत्थ । भत्तीए जिणो सव्वाण ताण पेच्छंतयाण ॥७२३ ॥ जहानम्राखण्डल-सन्मौलि-श्रस्त-मंदार-दामभिः । यस्यार्चितं क्रमाभ्भोजं [90B] भ्राजिते तं जिनं स्तुवे ॥७२४ ॥ यथोपहास्यतां याति तितीर्घः सरितां पतिं । दोर्ध्यामहं तथा जिष्णो जिनानन्त-गुण-स्तुतौ ॥७२५ ॥ तथाऽपि भक्तितः किंचिद्वक्ष्येऽहं गुण-कीर्तनं । महात्मनां गुणांशोऽपि दुःख-विद्रावण-क्षमः ॥७२६ ॥ नमस्तुभ्यं जिनेशाय मोहराज-बलच्छिदे । निःशेष-जंतु-संतान-संशयच्छेदि संविदे ॥७२७॥ १. दुट्ठो . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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