Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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बप्पभट्टि कथानक
एमाइ देवरूवे वन्निज्जंते न ठाइ जा तस्स । मणयं पि मणे हरिसो ता भणिओ एस नवकारो सो जयइ जएक्क-पहू तेलोक्कक्कंत-मज्झिमुद्देसं । नाणं जस्स विरायइ फलं व बद्धेक्क - कक्कडयं नाणाइसयं सोऊण देवदेवस्स रंजिओ भणइ । एसो देवो मज्झ अज्जप्पभिई पयंसेह
तो वीरनाह-पडिमा पयंसिया सार- रयण निम्मविया । रायाइ-दोस-सूयग-लंछण-रहिया जिणतणु व्व
सो तं पिच्छिय [89A] नो जाव किंपि जंपेइ ताव सूरीहिं । भणिओ जंपसु थवणं इमस्स ता सेस - विउसेहिं
चिंतियमेयं निय- माणसम्मि गरुओ वि बप्पहट्टीहं । पायय-जणो व्व जंपइ निय- दंसण - राय-माहप्पा
वप्पइराओ जम्हा महुमहणं मोत्तु सेस- देवाणं । किं कुणइ नणु पणामं कइय वि विनाय- परमत्थो पुणरवि भणिओ सूरी भणसु थवणं ति तो ससामंतो । हियट्ठिय- निय-भावस्स सूयगं भणइ इय गाहं
कंठेच्चिय परिघोलइ पुणरुत्तं पह [89B] रिसोवलक्खलिया । अपहुप्पंति व्व महं वाया पहुणो पसंसासु
सूरीहिं पुणो भणिओ तह वि हु भण किंपि एत्थ थोवं पि । एयाण पच्चयत्थं सामंताईण तो भणियं
मयणाहि- सामलेणं इय मुणिए किं फलं निडालेणं । इच्छामि इमं जिणवर-पणाम- किण- कलुसियं वोढुं
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