Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 72
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय परमेत्तियस्स जोगो मन्ने अहयं ति जेण घोलेइ । चित्तं भवाभिनंदीण माणवाणं कुलाईसु ॥६९५ ॥ सामलियं तेणेयं वयणं इय जंपिए भणइ सूरी । तुह चित्त-जाणणत्थं पयंपियं एरिसं वित्तं ॥६९६॥ जइ संसार-विरत्तो संपइ ता भणसु किं पि एयस्स । तस्स [87B] सरूवं संसार- कुलयमेयं तओ भणियं ॥६९७॥ कालवसा एकेक्केण इह महिंदत्तणं कयं बहुसो । आकीडमासरोयासणाउ (?) जे जंतुणो केवि । ॥६९८ ॥ तणु ति संचियाइं न दिति अन्नाइं संचिउं मोहा । हय परिभोगा सुवाइयाई बहुमया तह वि लोयस्स ॥६९९ ॥ तं चिय कलसं आलिंगिऊण ताई च किसल-कमलाई । जइ न अणंगो कह कामिणीसु उवयरिय-सोहासु संतावंतरिय-सुहो सुहाण कह होइ कारणमणंगो । जायइ न खंडियलवा लया-निमित्तं परसु-धारा ॥७०१ ॥ एमाइ वित्थरेणं भणिउं संसार-कुलयमालवइ । आ88A]म्हाण देह संपइ उवएसं नियय-वाणीए ॥७०२ ॥ तो भणइ बप्पहट्टी सरूवमिणमो सुणेह देवाणं ।। सव्वाण वि जो तुझं रोयइ तं माणसे धरसु ॥७०३ ॥ सो जयइ जस्स दाढा-फडक्कए उच्छलंत-निवडतो । नीसासुग्गम-विरमेसु होइ गिरिउ ब्व महि-गोलो सो जयइ जेण छन्नं सीसं बंभस्स कररुहग्गेहिं । अमरारि-वच्छ-निद्दय-दारण-निव्वडिय-सारेहिं ॥७०५॥ सो जयइ जेण तइया रंभा-वर-नट्टकोउहल्लेणं । निय-तव-माहप्पेणं वयण-चउक्कं कयं झ [88B]त्ति ॥७०६॥ ॥७०० ॥ ॥७०४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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