Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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बप्पभट्टि कथानक
कह नज्जइति भणिए केण वि नामेण निय-निमित्तेण । उल्लवियं तं नरवइ इओ भवाणंतरे आसि
कालंजरम्मि सेले जडहारी विविह-कट्ठ-तव- चरणो । पज्जंते काऊणं अणसणमिइ गिरि-गुहा- मज्झे
कट्ठोवरिम्मि लंबंत-पाय- सीसेण एग - चित्तेण । तस्स पभावा जाओ इय राया जइ न पत्तियसि
तो तत्थ निए पुरिसे पट्ठविडं अवितहं महाराय । जोया[93B] वसु जम्हा तुह जडाओ चिट्ठति अज्जेव
तेत्तियमित्तं कट्टं जइ कीरइ जिण-मयम्मि तो राय । पाविज्जइ सुरलच्छी अणोवमा नत्थि संदेहो
इय निसुए तो रन्ना निय- पुरिसा पेसिया तहिं ते उ गंतूणागंतूण य साहिंती एवमेयं ति
अहन्नया कयाई समागओ तत्थ साइसय - चि[94A]त्तो । चित्तयरो सकुडुंब लाभत्थी दूर-देसाओ
तेणं निय-वन्नेहिं चित्तं काऊण सव्व - सब्भावा । सिरि-अम्मराय-तणओ पयंसियं तिन्नि वारेवं
इत्तोवरि किं कज्जं इमेहिं जं नेय तोसिओ राया । मज्झत्थेणं केणइ भणिओ सो एव जंपंतो
॥७५० ॥
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॥७५१ ॥
इय दिट्ठपच्चओ वि हु कम्मवसा भणइ पत्थिवो भयवं । अम्हाण विधम्मम्मी किंची अस्थि त्ति फलमेयं
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॥७५२ ॥
॥७५३ ।
॥७५४।
॥७५५ ।
॥७५८ ।
तह वि हु किंपि न लद्धं खद्धं जं आसि संचियं दविणं । निव्विन्त्रेण कुटुंबं भणियं छिंदेह मे पाणी
॥७५९ ।
॥७५६ ।
॥७५७ ।
॥७६० ।
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