Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 77
________________ ७० बप्पभट्टि कथानक कह नज्जइति भणिए केण वि नामेण निय-निमित्तेण । उल्लवियं तं नरवइ इओ भवाणंतरे आसि कालंजरम्मि सेले जडहारी विविह-कट्ठ-तव- चरणो । पज्जंते काऊणं अणसणमिइ गिरि-गुहा- मज्झे कट्ठोवरिम्मि लंबंत-पाय- सीसेण एग - चित्तेण । तस्स पभावा जाओ इय राया जइ न पत्तियसि तो तत्थ निए पुरिसे पट्ठविडं अवितहं महाराय । जोया[93B] वसु जम्हा तुह जडाओ चिट्ठति अज्जेव तेत्तियमित्तं कट्टं जइ कीरइ जिण-मयम्मि तो राय । पाविज्जइ सुरलच्छी अणोवमा नत्थि संदेहो इय निसुए तो रन्ना निय- पुरिसा पेसिया तहिं ते उ गंतूणागंतूण य साहिंती एवमेयं ति अहन्नया कयाई समागओ तत्थ साइसय - चि[94A]त्तो । चित्तयरो सकुडुंब लाभत्थी दूर-देसाओ तेणं निय-वन्नेहिं चित्तं काऊण सव्व - सब्भावा । सिरि-अम्मराय-तणओ पयंसियं तिन्नि वारेवं इत्तोवरि किं कज्जं इमेहिं जं नेय तोसिओ राया । मज्झत्थेणं केणइ भणिओ सो एव जंपंतो ॥७५० ॥ Jain Education International ॥७५१ ॥ इय दिट्ठपच्चओ वि हु कम्मवसा भणइ पत्थिवो भयवं । अम्हाण विधम्मम्मी किंची अस्थि त्ति फलमेयं For Private & Personal Use Only ॥७५२ ॥ ॥७५३ । ॥७५४। ॥७५५ । ॥७५८ । तह वि हु किंपि न लद्धं खद्धं जं आसि संचियं दविणं । निव्विन्त्रेण कुटुंबं भणियं छिंदेह मे पाणी ॥७५९ । ॥७५६ । ॥७५७ । ॥७६० । www.jainelibrary.orgPage Navigation
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