Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 68
________________ प्रबन्ध चतुष्टय उव्वह-जायाए असोहिरीए फल - कुसुम-पत्त - रहियाए । बोरीए पयं दितो भो भो पामर हसिज्जिहिसि तो वाइऊण ताओ चिंता निय- माणसम्मि नूणमहं । सिरि-बप्पहट्टि -पहुणा विन्नाओ तेणिमं लिहियं ॥६५२ ॥ ॥६५३ ॥ मायंगासत्तमणस्स मेइणी तह य भुंजमाणस्स । अब्भिड तुज्झ नागावलोय को नडयधम्मस्स ल[83A ] ज्जिज्जइ जेण जणे मइलिज्जइ निय-कुलक्कमो जेण । कंठट्ठिए वि जीए मा सुंदर तं कुणिज्जासु जीयं जल-बिंदुसमं संपत्तीओ तरंगलोलाओ । सुविणय- समं च पेम्मं जं जाणिसि तं करिज्जासु बीय- दियहम्मि राया जा गच्छइ तत्थ तीए कज्जेणं । तो तत्थ गाह - विंदं आलिहियं उवरि पिच्छेइ तत्तो य विलीय-हियओ निवारिउं मेइणि तयं राया । निय- अत्थाणम्मि ठिओ अहोमुहो पुच्छई सूरिं जा तत्थ पायच्छित्तस्स सोहणत्थं सयं समारुहइ । ता धरिडं सूरीहिं करम्मि एयं पयंपेइ सुद्धो नरनाह तुमं जम्हा हियएण चिंतियं पावं । इय अज्झवसाणेणं सुद्धं सव्वं पि तं तुज्झ जइ पुण कारण कयं हुंतं तं काय - दहणओ सुज्झे । इय भणिए संबुद्धो सट्ठाणे तो समागओ राया १. असोहरीए २. नट्ठधम्म० ३. पहू Jain Education International ६१ ॥६५१ ॥ तत्तो किं एवं ति भणइ तो पहुणा [83B] अग्गिरिति वृत्तम्मि । नरवइणा तो बाहिं चियं महंतं करावेडं For Private & Personal Use Only ॥६५४ ॥ ॥६५५ ॥ ॥६५६ ॥ ॥६५७ ॥ ॥६५८ ॥ ॥६५९ ॥ ॥६६० ॥ ॥६६१ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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