Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 52
________________ ४५ ॥४७४॥ ॥४७६ ॥ ॥४७८ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय गोवालउरे बीयं चेइहरं वीर-सामिणो विहियं । तेवीस-हत्थ-माणं सुलेप्पमयं वीर-पडिबिंबं जस्स सवाओ लक्खो टंकाण बलाणयम्मि नणु लग्गो । तस्स कहं वन्निज्जइ सोहा जिणमंदिरस्सेत्थ ॥४७५ ॥ किं बहुणा चउरासीतेणं दव्वेण तम्मि समयम्मि । चेईहराई संघेण कारियाई वरिट्ठाई सावय-जणेण जइ वि हु कयाइं तह वि हु भणइ तहिं लोओ। एए विहारा सिरि-बप्पहट्टिणो सेयभिक्खुस्स ॥४७७ ॥ अन्नं च तस्स सिरि-अम्म-राइणा खाइमिच्छ[60B]माणेण । पुहइवइ-अलंकारो दिनो एसो पमोएण मत्त-गइंदो छत्तं चामरे बहु परियणो य तह पढमं । कीरइ नमणं सामंत-मंति-लोएण अत्थाणे ॥४७९ ॥ एवं वच्चंतम्मी काले तह अन्नया य राईहिं । आलोचिऊण सव्वेहिं जंपियं राइणो पुरओ ॥४८० ॥ . देव न जुत्तं एवं जं कीरइ सेयभिक्खुणो पढमं । एस पणामो सिहासणं च दाउं न जुत्तं ते ॥४८१ ॥ जइ पुण एवं कीरइ ता एयस्सेव कीरउ धम्मो । विण्हुवयारो राया हवेइ कह कुणउ नमणविहिं ॥४८२॥ एवं भणिए २वि तुम्ह रोयए जइ न अम्ह वयणमिणं । तो नो अम्हे सव्वे वि देवपाया61A]ण पाइक्का ॥४८३॥ एवं भणिए रन्ना पडिवनं ताण संतियं वयणं । तो बीय-दिणे रन्ना दवावियं आसणं भिन्नं ॥४८४॥ १. भणे तहिं २. रायणा ३. वि न तुम्ह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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