Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 54
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय ४७ गाहद्धमिणं सोऊं रन्ना ईसा-परव्वसेणेयं । निय-माणसम्मि धरियं नूणं संचरइ भज्जाए ॥४९४॥ गुज्झमिणं कह नज्जइ इहरा एवं वियप्पई जाव । ता दिठ्ठि-वियारेणं मुणियमिणं सूरिणा तत्तो ॥४९५ ॥ उठेऊण सहाए नावाए आरुहित्तु रायगिहे । नयरम्मि गओ उज्जाणे संठिओ विउस-वग्गेण ॥४९६॥ सिट्ठो छत्तीसं-गाम-लक्ख-सामिस्स धम्मरायस्स । सिरि-गउडदेस[62B]-पहुणो जह पत्तो एत्थ नरनाह ॥४९७॥ सिरि-बप्पहट्टिसूरी समत्थ-विउसयण-सेहरो तम्हा । किज्जउ सामिय उचिया पडिवत्ती तो निवो भणइ ॥४९८ ॥ जह मह देसा सिग्धं निग्गच्छइ तह करेह नो सूरी । इय भणिए विउसेहिं भणिओ सिरि-धम्मराओ त्ति ॥४९९ ॥ तुम्हाण इमं काउं नो जुज्जइ जेण उत्तमो विउसो । एसो एव कयम्मी जयम्मि होही गुरू अयसो ॥५०० ॥ रन्ना भणियं भो भो नेयमवन्नाए जंपिमो अम्हे । किंतु इहं सो सूरी थिर-[63A]वासो नेय होहि त्ति ॥५०१ ॥ तम्मि गए निय-ठाणं होही मह माणसम्मि बहु दुक्खं ।। तविरहे जेणं नत्थि एय-सरिसो जए विउसो ॥५०२॥ ता पढम चिय कीरउ एवं एयस्स जइ परं एसो ।। जंपइ न जामि अहयं कयावि कन्नउज-नयरम्मि ॥५०३ ॥ जाव न राया अम्मो आगच्छइ मज्झ एत्थ अत्थाणे । इय सोउं तेहिं इमं सुणाविओ बप्पहट्टि पहू ॥५०४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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