Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 55
________________ ४८ ॥५०७॥ बप्पभट्टि - कथानक तेण वि तं पडिवनं तओ य गुरु-वित्थरेण निय-नयरे । सिरि-बप्पहट्टि-सूरी पवेसिओ धम्म-नरवइणा ॥५०५ ॥ तारिस-पडि[63B]वत्तीए पंडिय-गोट्ठीए तत्थ चिट्टेइ ।। एत्तो कन्नउज-पुरे न नज्जई कत्थइ गओ त्ति ॥५०६॥ अह अन्न-वासरम्मि सरीरचिंता-गएण नरवइणा । अम्मेणं जुज्झंतो नउलो अहिणा समं दिट्ठो सो पुण निहओ फणिणा रन्ना तो चिंतियं किमेयं ति । जा सम्मं अवलोयइ ता सप्प-सिरे मणी दिट्ठो ॥५०८ ॥ तो विन्नायं 'रण्णा एय-पभावेण निज्जिओ एसो । तो तं थंभेऊणं मंतेणं गिण्हिऊण करे ॥५०९ ॥ पावरिय-पिहुल-पडओ अस्थाणे संठिओ भणइ एवं । भो भो विउसा पूरह सि[64A] लोयद्धं इमं अम्हं ॥५१० ॥ ' शस्त्रं शास्त्रं कृषि विद्या यो यथा येन वर्त्तते ' ॥५११ ॥ नो सक्कइ कोवि तहिं पूरेउं अणुगयत्थमिय रन्ना ।। भणियं पुणो वि जो इह पूरेई तस्स हिय-इटुं ॥५१२ ॥ दाहामि एव निसुए रन्नो जूआरिएण गंतूणं । सिरि-बप्पहट्टि-पासे नमिऊणं भणियमेवं ति ॥५१३॥ मम देह सामि वित्तिं पूरेउं संगयं इमस्सऽद्धं । तो बप्पहट्टि-पहुणा पयंपियं एवमद्धं से ॥५१४॥ 'सुगृहीतं तं कर्तव्यं कृष्ण-सर्प-मुखं यथा ' ॥५१५ ॥ सो तं गिन्हिय सिग्धं समागओ राइणो सयासम्मि । निसुणेसु सामियऽद्धं मए कयं इह सिलोगस्स ॥५१६ ॥ १. राया २. ० य एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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