Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 58
________________ प्रबन्ध चतुष्टय माणस - रहिएहिं सुहाई जह न लब्धंति रायहंसेहिं । तह तस्स वि तेण विणा तीरुच्छंगा न सोहंति [67A]मलओ सचंदणो च्चिय नइ - मुह-हीरंत - चंदणदुमो वि । भट्टं पि ह मलयाओ चंदणं जायइ महग्घं - विज्झेणं विणा वि गया नरिंद-भुवणम्मि हुति गारविया विज्झो न होइ अगओ गएहिं बहुएहिं वि गएहिं इय उज्जुय - सीलालंकियाण पायडिय गुण - महग्घाणं । गुणवंतयाण पहुणो पहूहि गुणवंतया दुलहा तो तेहि वि गंतूणं समप्पिओ अम्मराइणो लेहो । तेण वि सिरे धरेउं खणमेगं वाइओ पच्छा अवगय-भावत्थेणं नायं नो एत्थ कइय वी सूरी । आगच्छिस्सइ तो जामि तस्स सयमेव पासम्मि पत्तो कमेण नयरीए चेव सिरि-बप्पहट्टि पासम्मि | नमिउं पएस जंपइ आगच्छह करिय सुपसायं सूरीहिं तओ भणिओ राया अम्हेहिं आगएहिं तओ । एस पन्ना विहिया जइया इह अम्मराओ त्ति आगच्छिस्सइ तइया गमणं अम्हाण अन्नहा नेय । तो धम्म'-राइणेवं पडिवत्ती अम्ह इह विहिया ता तुब्भे इह वसिउं रयणीए राइणो य अत्थाणे । गंतूण तओ गोसे गच्छेज्जह निय-पुरे तुरियं १. रायणेवं ० Jain Education International [67B]इय चिंतिय आरूढो राया रयणी सिग्घ- वेगा । चरियाए कइवय - पुरिस - संजुओ रायगिह-नयरे For Private & Personal Use Only ५१ ॥५३९ ॥ ॥५४० ॥ । ॥५४१ ॥ ॥५४२ ॥ ॥५४३ ॥ ॥५४४ ॥ ॥५४५ ॥ ॥५४६ ॥ ॥५४७ ॥ ॥५४८ ॥ ॥५४९ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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