Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 61
________________ १४ बप्पभट्टि - कथानक उवविट्ठा तो ठविया सभासया सच्चवाइणो कुसला । वद्धणकुंजर-सिरि-बप्पहट्टिसूरीहिं तो वाओ ॥५७२ ॥ विहिओ तत्थ पएसे छम्मासा जाव वोलिया ताणं । को वि न जिणइ न हारइ तो भणियं अम्मराएणं ॥५७३॥ कित्तियमित्तं कालं एवं अम्हेहिं चिट्ठियव्वं ति । जम्हा नयराहिंतो समागया संढिया एत्थ ॥५७४॥ पभणंति ते य सीयंति रज्ज-कज्जाइं देव सव्वाइं । तो आगच्छह [71B] सिग्धं तह पुलिं आसि अम्हेहिं ॥५७५ ॥ चिंतियमेयं जह बप्पहट्टिणो एग-दिवस-मज्झम्मि । वद्धणकुंजर वाई सज्झो होहि त्ति ता कहसु ॥५७६ ॥ केण निमित्तेण गओ एत्तियकालो इहं बहू तुम्ह । इय पुट्ठो नरवइणा पयंपिओ एव नरनाहो । ॥५७७॥ सिरि-बप्पहट्टि-पहुणा नरवइ सुह-जोग-कारणा कालो । एत्तियमित्तो गमिओ तुम्हाणं जेण केणावि ॥५७८॥ कज्जमिह विणोएणं गयाइणा ना वरं इमो विहिओ । [72A] अनह पेच्छसु कल्ले वि तुम्ह दंसेमहं विजयं ॥५७९ ॥ इय भणिऊणं रयणीए सुमरिया वयण-देवया पहुणा । करिऊण इमं थोत्तं सिलोय-चउद्दस-परिमाणं ॥५८० ॥ “अधरित-कामधेनु-चिन्तामणि-कल्पलते । नमदमराङ्गनावतंसार्चित-पादयुगे । प्रवचनदेवि देहि मह्यं गिरि तां पटुतां । नवितुमलं भवामि मन्दोऽपि यया भवतीम्” ॥५८१ । इच्चाइ थवयणंते समागया झत्ति भारई देवी । तीए भणियं किं पहु सरियाऽहं कहसु मे कज्जं ॥५८२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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