Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 59
________________ ५२ बप्पभट्टि - कथानक [68A] कहियं निवस्स एवं अम्हे लहुमेव आगमिस्सामो । इय भणिओ तो राया सूरीहिं समं गओ तत्थ ॥५५० ॥ सीहासणोवविट्ठस्स सूरिणो धम्मराइणा भणियं । पत्थुय-रायकहाए केरिसओ तुम्ह राय त्ति ॥५५१ ॥ सूरीहिं सो राया पयंसिओ एरिसो फुडं राया । रूवेणं वन्नेणं वएण जह एस मम पुरिसो ॥५५२ ॥ तो तं निरूविऊणं गुरुवेलं पत्थुया कहा अन्ना । नरवइणा अत्थाणे समुट्ठिए सीहवारम्मि ॥५५३॥ निय-नामंकिय-कडयं प[68B]क्खित्तं निय-कराओ कड्डेउं । वार-विलयाए बीयं दिन्नं वुत्थेण रयणीए ॥५५४॥ वत्थाणि परिच्चइउं पहाय-समयम्मि संढिमारूहिउं ।। नमिऊण बप्पहट्टिस्स चल्लिओ निय-पुराहुत्तं ॥५५५ ॥ सूरी वि पहर-समए रन्नो अत्थाण-मंडवे गंतुं । जंपइ अम्हे जामो सिरि-धम्म-नरिंद कन्नउजे ॥५५६ ॥ तो नरवइणा भणियं सच्चपइन्ना हवंति वर-मुणिणो । ता कह जुत्तं वोत्तुं इय वयणं अकय-वयणाणं ॥५५७॥ पहुणा भणियं तत्तो निय-वयणं सच्चमेव [69A] अम्हेहिं । विहियं तेणं एवं जंपेमो राय तुह पुरओ ॥५५८ ॥ जंपंति जाव एवं परोप्परं ताव आगया तत्थ ।। वत्थाणि ताणि परिहिय कडयं च करम्मि तं काउं ॥५५९॥ चमरधरी नरवइणो विलासिणी तीए तं करे दटुं ।। तह पडिहार-समप्पिय-बीयं नामंकियं कडयं ॥५६० ॥ १. रायसहाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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