Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 60
________________ ५३ ॥५६१ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय सिरि-अम्मराय-नरवड्-तणयं ति राइणा तओ भणियं । सिरि-बप्पहट्टिसूरीए समुहं महुर-वायाए कह नो कहियं अम्हाण तस्स पुहईसरस्स आगमणं । तुम्हेहिं एव भणिए पयंपियं सूरिणा एवं ॥५६२ ॥ साहिज्जइ जारिसयं विउस-जणे तारिसं मए कहियं । पंडिय-जणाण जम्हा दंसिज्जइ अंचलो चेय ॥५६३॥ तो तेण 'चंडवेगं नरवइणा तस्स मग्गओ झत्ति ।। पट्टवियं निय-साहण[69B]मिओ य निय-पुरे पत्तो ॥५६४ ॥ आगंतूणं तेणं सिटुं नरनाह चलण-रेणू वि । नो दिट्ठा अम्हेहिं तो राया भणइ बहु-खेओ ॥५६५ ॥ दोहिं पि पगारेहिं मह चित्ताओ न फिट्टिही एसो । अवरत्तो जं वइरी जीवंतो निय-पुरे पत्तो ॥५६६॥ गिहमागयस्स जइ पुण करिज्ज इह सागयं तओ अम्हं । जावज्जीवं होज्जा दढ पीई किं घए (?) करेमो ॥५६७ ॥ छम्मेणं अहं छलिओ इय वोत्तुं तो विसज्जिओ सूरी ।। पूयं काऊण वरं नमिऊण धम्म-नरवइणा ॥५६८॥ तो बप्पहट्टिसूरी समागओ कन्नउज्ज-नयरम्मि । महया विच्छड्डेणं पवेसिओ अम्मराएण ॥५६९॥ पुव्व-कमेणं वच्चइ कालो तत्थ-ट्ठियस्स सूरिस्स ।। अह धम्मराय-दूओ समागओ अन्नया तत्थ ॥५७० ॥ जोडिय-करेण [ . . . . पत्र 70 अप्राप्य . . . . ] . . . . . . . . . . [पत्र 71A]उस परियरिया ॥५७१ ॥ १. दंडवेग २. कन्नउज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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