Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 64
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय ५७ साहुक्कारो विहिओ सभासएहि अहो इमो भुयणे । एकलवट्टो सिरि-बप्पहट्टिसूरी महावाई ॥६०६॥ 'विजइ य सेयवडाणं दंसणमेयारिसा जहिं पुरिसा । हेलाए जेहिं विजिओ वद्धणकुंजर - महावाई ॥६०७॥ तम्मि समयम्मि दिन्नं पहुणो सिरि-अम्मराइणा विरुयं । गयवइ एसो अन्नाणि तस्स एयाइं नामाई ॥६०८॥ जाणिहह बप्पहहि गुणाणुराइं च भद्दकित्तिं च । तह गयवइमायरियं सेयभिक्खं च वाइं च ॥६०९ ॥ विजियं रज्जं सो वि य वाई भिक्खूण नमिय सूरिस्स । जंपइ देह निय - वयं करेह सहलं पइन्नं ति ॥६१० ॥ सूरी [ 75-78 अप्राप्य. . . . . . . . ] ॥६११ ॥ . . . . . . . . . . [पत्र 79A]. . . . . . पूर्व ॥६१२॥ तं पिच्छिऊण राया निय-करं भामिऊण पुच्छेइ । अभणंतो वाणीए मुणिउं सूरीहिं तब्भावं ॥६१३॥ उब्भेवि अंगुलीओ दिन्नं तेणं कमेण पडिवयणं । तत्तो राया पत्तो नमिउं तं नियय-आवासे ॥६१४॥ सावयजणेण पुट्ठो सूरी किमणेण पुच्छिओ भयवं । किं वा दिन्नं तुब्भेहिं एत्थ पडिवयणमिह कहह ॥६१५ ॥ तो नन्नायरिएणं भणियं भो सावया इमो राया । पुच्छइ एवं जह अम्ह चेव एसा भवे पूया ॥६१६ ॥ अम्हेहिं पुणो भणियं नरवइणो एत्थ होंति किं सिंगा । तेणं पयंसियाओ उब्भेउं अंगुली दो उ ॥६१७॥ १. विजई २. गयवयमा ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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