Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 62
________________ ५५ प्रबन्ध - चतुष्टय तो भणिया सा पहुणा कहेसु मह इत्तियं इमो वाई । [72B] किं साभाविय-पन्नो उवाहु वाहीपरो को वि ॥५८३ ॥ तो देवीए भणियं मम सन्निज्झं इमस्स अस्थि त्ति । केण निभेणं पुढे जंपइ गुडिया-पभावेण ॥५८४॥ तो तस्स मुहे गुडिया विज्जइ ता सो जुयंतरे वि इहं । नो हारइ इय कहिए पुट्ठा वाएसरी देवी ॥५८५ ॥ जिण-दंसणस्स उवरिं किं तुज्झ न विज्जए परा भत्ती ।। एयस्स जेण कीरइ सन्निझं एव भणियम्मि ॥५८६ ॥ देवी जंपइ मज्झ वि आसि इमं कोउयं जहा सूरी ।। केत्तियमेत्तं कालं मए समं जंपई एत्थ ॥५८७॥ जिणदंसणोवरिं पुण एगतेणं वरा महं भत्ती । कटेणं रंजियाहं [73A] एयरस इमा मए दिन्ना ॥५८८ ॥ तो जंपह जं कीरइ सूरी पभणेइ गच्छ नियट्ठाणे । एवं नाए सिग्धं सयमेवेमं जिणिस्सामि पुणरवि भणियं वाएसरीए वयणस्स अंतिमं एगं । एयस्स लहुं फेडह सिलोयमिहरा महं दुक्खं ॥५९० ॥ तम्हा इमम्मि ते केवि अक्खरा निवडिया पहू जाणं । माहप्पाओ अहयं तरामि नो चिट्ठिउं ठाणे ॥५९१ ॥ कित्तियमेत्ताण तओ आगच्छिस्सामि अंतिए तत्तो । तीए वयणेण सूरीहिं तह कए सा गया ठाणं ॥५९२ ॥ एत्तो पहाय-समए संकेयं करिय रायकुमरस्स । उवविठ्ठो सहमज्झे सूरी सेसा वि निव-पमुहा ॥५९३ ॥ एत्थंतरम्मि [73B] कुमरो समागओ सो करम्मि काऊण । उचिय-जल-भरिय-करवयमेवं तत्तो पयंपेइ ॥५९४ ॥ ॥५८९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114