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प्रबन्ध - चतुष्टय तो भणिया सा पहुणा कहेसु मह इत्तियं इमो वाई । [72B] किं साभाविय-पन्नो उवाहु वाहीपरो को वि ॥५८३ ॥ तो देवीए भणियं मम सन्निज्झं इमस्स अस्थि त्ति । केण निभेणं पुढे जंपइ गुडिया-पभावेण
॥५८४॥ तो तस्स मुहे गुडिया विज्जइ ता सो जुयंतरे वि इहं । नो हारइ इय कहिए पुट्ठा वाएसरी देवी
॥५८५ ॥ जिण-दंसणस्स उवरिं किं तुज्झ न विज्जए परा भत्ती ।। एयस्स जेण कीरइ सन्निझं एव भणियम्मि
॥५८६ ॥ देवी जंपइ मज्झ वि आसि इमं कोउयं जहा सूरी ।। केत्तियमेत्तं कालं मए समं जंपई एत्थ
॥५८७॥ जिणदंसणोवरिं पुण एगतेणं वरा महं भत्ती । कटेणं रंजियाहं [73A] एयरस इमा मए दिन्ना ॥५८८ ॥ तो जंपह जं कीरइ सूरी पभणेइ गच्छ नियट्ठाणे । एवं नाए सिग्धं सयमेवेमं जिणिस्सामि पुणरवि भणियं वाएसरीए वयणस्स अंतिमं एगं । एयस्स लहुं फेडह सिलोयमिहरा महं दुक्खं
॥५९० ॥ तम्हा इमम्मि ते केवि अक्खरा निवडिया पहू जाणं । माहप्पाओ अहयं तरामि नो चिट्ठिउं ठाणे
॥५९१ ॥ कित्तियमेत्ताण तओ आगच्छिस्सामि अंतिए तत्तो । तीए वयणेण सूरीहिं तह कए सा गया ठाणं ॥५९२ ॥ एत्तो पहाय-समए संकेयं करिय रायकुमरस्स । उवविठ्ठो सहमज्झे सूरी सेसा वि निव-पमुहा ॥५९३ ॥ एत्थंतरम्मि [73B] कुमरो समागओ सो करम्मि काऊण । उचिय-जल-भरिय-करवयमेवं तत्तो पयंपेइ
॥५९४ ॥
॥५८९ ॥
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