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बप्पट्टि - कथानक अप्पक्खालिय-वयणाण जं एनाण एत्तिओ कालो । तुम्हाण गओ ता अज्ज वयण-सुद्धिं करेऊण
॥५९५ ॥ कीरउ वाओ जेणं जायइ निस्सेसयं परिच्छेओ । निम्विन्ना रायाणो दोवि हु एवं भणेऊण
॥५९६॥ पढमं चिय नियराया आमो तेणं कराविओ सुद्धिं । अंतो बाहिं वयणस्स धरिय हेट्ठा पडग्गहियं
॥५९७॥ तत्तो बीओ राया तओ य सूरी तओ य गंतूण । वद्धणकुंजर-वाइस्स अंतिए भणइ तुम्हे वि
॥५९८॥ पकरेह वयण-सुद्धिं नेच्छइ सो जाव ताव सन्नाए । सिरि-बप्पहट्टि-पहुणा बप्पइराओ इमं भणिओ ॥५९९ ॥ करेसु वयणं [74A] एयं तो तेणं जंपिओ सो उ । तुम्हे वि वयण-सुद्धिं करेह किमकज्जमेईए
॥६०० ॥ पहुणा वि कया जम्हा एवं उत्तेजिएण तेणावि । विहिया मुहस्स सुद्धी झड त्ति ता निवडिया गुडिया ॥६०१ ॥ तेण वि गहिया कुमरेण निय-करे जाइया य तेणं सो । किं तुब्भे वि हु भयवं वंतासी भणिय धरिया सा ॥६०२ ॥ एवं मुह-सुद्धीए कयाए तेणं पयंपियं कुणह । इण्हि वायं तो ते वि वाय-करणे कयारंभा
॥६०३॥ जंपंति जाव अहमहमिगाए तो तीए विरहिओ वाई । वद्धणकुंजर नामो ठाणे ठाणम्मि पक्खलई
॥६०४॥ सिरि-बप्पहट्टि-बहुविह-वियप्पमालाए मोहिओ संतो । 'किंपि न [74B] सक्कइ वोत्तुं पडिवयणं तो जिओ पहुणा ॥६०५ ॥ १. पखलई २. कंपि
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