Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ ५८ बप्पभट्टि - कथानक राया वि तओ ठाणा गोविंद-पहुस्स दंसणट्ठाए । तत्थ गओ जत्थऽच्छइ सो सूरी सो य त[79B]स्समए .. ॥६१८ ॥ वच्छायणसत्थं कहई कस्सइ अभिणएण सह तत्तो । काउं देव-पणामं अनमिय सूरिं गओ तत्तो ॥६१९॥ बाहिं निययावासे भावं नाऊण सूरिणा तस्स । एगो पुरिसो पट्ठीए पेसिओ सोहणत्थं से ॥६२० ॥ को एसो किं जंपइ एवं मुणिऊणं कहसु सिग्घं ति । गंतूण तेण सिग्धं मुणिउं इय सूरिणो सिटुं ॥६२१ ॥ उल्लवियं एएणं नियस्स पुरिसस्स अग्गओ एसो । पंडिच्चेणं लट्ठो' सीलेणं न उण तं सुणियं ॥६२२॥ सूरी चिंतइ नूणं अम्ह परिक्खणस्थमागओ होज्जा ।। एसोऽत्थ अम्मराओ ता किं विउसत्तणेणऽम्ह ॥६२३ ॥ इय अलिय-दोस-दूसिय-गुणाण ता अत्तणो इमं दोसं ।। अवणेमि चिंतिऊ[80A]णं संधीबंधेण तो सत्थं ॥६२४ ॥ रइऊण अप्पिऊणं नडस्स सो पेसिओ तओ पहुणा । सिरि-कन्नउज्ज-नयरे सो वि य गंतूण तं पढइ ॥६२५ ॥ रायसहाए सिरि-बप्पहट्टि-विउसाइ-मज्झयारम्मि । अह तस्स पढंतस्स य समागयं वयणमेयं ति ॥६२६ ॥ 'कंचणड्ड सुवियड्ड गिरि-वेयड्ड विहावई' ॥६२७॥ तो पहुणा देसेणं पयंपियं अड्डऊणया जाया । दो रूवा इह कव्वे नो लद्धं किंपि तेण तओ ॥६२८॥ आगंतूणं सिटुं गोविंद-पहुस्स तो सयं गंतुं । सूरी नडरूवेणं पढइ तहिं अमरिसा-संधिं ॥६२९॥ १. लद्धो २. कन्नउज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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