Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 57
________________ ५० बप्पभट्टि - कथानक साहाए तस्स तरुणोऽवलंबिया तं सुणेवि नरनाहो । 'अहिययरं संतत्तो पहुणो विरहानलेण तओ ॥५२८॥ हा हा असुहं पुवि धरियं निय-माणसम्मि जेण पहू । इय कव्व-करण-सत्ती पच्चक्ख-सरस्सई एसो ॥५२९ ॥ इय जंपिऊण दाऊण तस्स हिय-इच्छियं बहुं दाणं । आणयणत्थं सिरि-बप्पहट्टिणो पेसिया पुरिसा ॥५३० ॥ इय सिक्खवियं जह मह अवराहं खमेह एक्कसो विहियं । तुम्ह [66A] समा जं पहुणो खमंति पणयाण पुरिसाण ॥५३१ ॥ तेहिं वि गंतुं सिटुं जहट्ठियं राइणो इमं वयणं । सूरीहिं तओ भणियं एत्थ वि अम्हाण खेमं ति ॥५३२॥ आगच्छिस्सं नाहं सब्भावे साहियम्मि तो तेहिं । भणियं करिय पसायं अप्पह अम्हाण लेहं ति ॥५३३॥ सूरीहिं तओ निय-भाव-सूयगं लिहिय-गाहा-विंदमिणं । रायपुरिसाण हत्थे समप्पियं तक्खणा चेव ॥५३४॥ खंडं विणा वि अखंङ-मंडलो चेव पुन्निमा-चंदो । हर-सिरि गयं पि सोहइ न चेव [66B] विमलं ससीखंडं ॥५३५ ॥ एक्केण कोत्थुभेणं विणा वि रयणायरो च्चिय समुद्दो । कोत्थुभ-रयणं उयरे जस्स ट्ठियं सो महग्घवियओ ॥५३६ ॥ अग्घायंति महुयरा विमुक्क-कमलायरा वि मयरंदं । कमलायरो वि दिट्ठो सुओ वि किं महुयर-विहूणो ॥५३७ ।। परिसेसिय-हंसउलं पि माणसं माणसं न संदेहो । अनत्थ वि जत्थ गया हंसा वि बया न भन्नति ॥५३८॥ १. अहियरं २. व्व ३. व्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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