Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 51
________________ ४४ भट्ट कथानक ता बप्पहट्टि पहुणा महंत कट्ठेण संघ-वयणेणं । पडिवन्नं १ निव-वयणं अवणीया लोइया तत्तो तप्प भई अन्त्य वि जाया चेइयहरेसु एस परी । कंबलय- निसेज्जासुं पुव्विं पुण आ[59A ]सि उवविसणं उवविसइ बप्पट्टी निवस्स सीहासणम्मि इयरो उ । उवविसइ नीयतरए भिन्ने सीहासणे निच्चं रज्जं असंगहंतस्स सूरिणो अम्मराइणा दिना । २ सत्तरि सहस्स गामाण लक्खमेगं च सयकालं पक्खते पक्खते सहस्सेय - पाहुडं च सव्वं पि । सूरी वि सव्वमेयं समप्पए नियय - संघस्स सो विय तेणं दव्वेणं कुणइ पडिमा कज्जमणवरयं । सिरि-कन्न उज्ज - नयरे तहा हि पढमं [59B]कयं रम्मं एक्कोत्तर-सय- हत्थं कंचणमय- कलस - सोहियं रम्मं । चामीयर-धय- दंडावलीढ-धय-कणिर- खिखिणियं नाणारूवय - विच्छित्ति - मंडियं विमल-सेल-दल-घडियं । पडिच्छंदं पिव उत्तुंगिमाए नं मेरु- सेलस्स अट्ठारस-भार- सुवन्न-माण- सिरि-वद्धमाण- पडिमाए । भूसिय- गब्भहरयं विसाल-वर - जगइ-कय-सोहं एवंविह- देवहरं विहियं सिरि-कन्नउज - नयरम्मि | अज्ज वि तहट्ठियं चिय दिसइ तं भव्वलोएहिं कंचण - पडिमा संपइ गंगा- तीरम्मि [60] गोविया सा उ । मेच्छाहिवाण जाए भयम्मि बिंबंतरं ठवियं | १. निय २. असंगहतस्स । ३. सतरि ४. सहसे Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥४६३ ॥ ॥४६४ ॥ ॥४६५ ॥ ॥४६६ ॥ ॥४६७ ॥ ॥४६८ ॥ ॥४६९ ॥ ॥४७० ॥ ॥४७१ ॥ ॥४७२ ॥ ॥ ४७३ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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