Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 49
________________ ४२ बप्पभट्टि - कथानक ॥४४० ॥ ॥४४१ ॥ ॥४४२ ॥ ॥४४३॥ ॥४४४॥ ॥४४५॥ उवविससु मज्झ सीहासणम्मि एवं पयंपिए भणइ । एयं पि नेय जुत्तं जम्हा गुरु-दिनयं एयं जुज्जइ परिभोत्तूणं [56B] सामन्न-मुणीण इहरहा नेय । तो सो पुणो वि सामंत-परिवुडो पेसिओ रन्ना मोढेरयम्मि नयरे भणाविया सूरिणो मम पसायं । एयं सूरिं काउं पेसह जइ जुज्जई एवं तो तेहिं राय-भणणाओ बप्पहट्टिस्स जोग्गयाए य । आलोचिऊण संघं सूरि-पयं वियरियं तस्स सोहण-दिवसे गुरु-वित्थरेण तत्तो य एवमणुसट्ठो । संघ-समक्खं सिरि-बप्पहट्टिसूरी जहा भो भो उत्तममियं पयं जिणवरेहिं लोगुत्तमेहिं पन्नत्तं । उत्तम-पय-संजणियं उत्तम-जण-सेवियं लोए धन्नाण निवेसिज्जइ धन्ना गच्छंति पारमेयस्स । [57A]गंतुं इमस्स पारं पारं वच्चंति दुक्खाणं बूढो गणहर-सद्दो गोयममाईहिं धीर-पुरिसेहिं । जो तं ठवइ अपत्ते जाणंतो सो महापावो एवमुवालंभम्मी जुज्झइ कह एय विवरणं अम्ह ।। काल-वसा अम्हे वि हु न तारिसा जारिसा सुत्ते तं पुण रायाईहिं कयपूओ निव-रिसि त्ति मा गव्वं । चित्ते वहिज्ज किरियं करेज्ज साहूण तह निच्चं दंसण-पभावणाए उज्जुत्तो होज्ज भद्द किं बहुणा ।। तह जइयव्वं जह से कयाइ नो एइ तुह खलियं एवमणुसट्ठो सूरी एमाइ भणिय पुण समुठेउं । नमिऊण गुरुं जंपइ [57B] भयवं मह जावजीवाए ॥४४६॥ ॥४४७॥ ॥४४८॥ ॥४४९ ॥ ॥४५० ॥ ॥४५१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114