Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 50
________________ ४३ प्रबन्ध - चतुष्टय विगईणं परिभोगे नियमो सव्वाण जेण जीवाणं । एयच्चिय विगइकरा' विगई-गमणम्मि दढ-हेऊ ॥४५२॥ एवं गिण्हिय नियम परिणय-मुणि-विंद-संजुओ सूरी । सामंत-विंद-कलिओ कनउज-पुरम्मि संपत्तो ॥४५३॥ पुव्व-कमेण पविट्ठो उवविट्ठो आसणे तत्तो . . . . । तत्थ वि उवरिं काउं लोइयमिइ दट्ठ तो रण्णा ॥४५४ ॥ सिरि-बप्पहट्टिसूरी पुट्ठो अज्ज वि न कप्पए एयं । सूरि-पय-संठियाण वि खिवेह जं लोइयं उवरिं ॥४५५ ॥ भणियं पहुणा तत्तो तुम्ह उवरोहेण राय उवविठ्ठो । तुह आसणम्मि अन्नह [58A]नो कप्पइ अम्ह सयकालं ॥४५६ ॥ अप्पङि-दुप्पडिलेहिय-निवास-सेज्जासणेसु उवविसणं । इय मेरा अम्हाणं आणा-भंगो भवे इहरा ॥४५७॥ जह कहवि एव कुणिमो तुज्झुवरोहा वयं तओ होमो । बज्झा नियस्स संघस्स सुणिय इय राइणा तत्थ ॥४५८॥ आहूओ सव्वो वि हु संघो निय-नयर-वासिओ तत्तो । भणिओ य सबहुमाणं जोडिय-कर-संपुडेणेवं संपइ काले हीणं तुम्हाणं दंसणं ति इय मुणिउं । राईहिं परि[58B]ग्गहियं होइ जणे पूय-ठाणम्मि ॥४६० ॥ ता भणह बप्पहट्टि जेणं उवविसइ सव्व-कालं पि । एसो मसूरियासुं इहरा लज्जामि अहयं ति ॥४६१ ॥ तो संघेणं भणिओ सूरी एवं करेह निव-भणियं । तुम्हाण नत्थि दोसो अम्ह रेवयणेण विहियम्मि ॥४६२॥ १. विगयकरा २. वययेण ॥४५९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114