Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 44
________________ ४. बप्पभट्टि - कथानक [49B] ललियालाव-मणोहर - समत्थ- जण - पुन्न-सयल-पुर- गामो । अस्थि पसिद्धो देसो गुज्जर - देसो त्ति नामेण ॥३८४ ॥ जम्मि जणाणं मणयं पि माणसे वसइ नेय कालुस्सं । पच्चासन्न - द्विय- तित्थ भाव - तित्थं व तत्थऽस्थि विमल - जलाउल - सब्भमइ' -सरिय-तीर-ट्ठियं वरं गामं । बहु- धण-धन्न-समिद्धं नामेणं पाडला तम्मि । मोढेर - गच्छ नहयल- भूसण पडिपुत्र - चंद- बिंबाहो । सिरि-सिद्धसेणसूरी आसी जय-पयड - माहप्पो दट्ठूण जस्स मन्ने पंडिच्चं लज्जिओ' व्व गयणम्मि । वासं विहे निच्चं विहप्फई तस्स किं भ[50]णिमो लोइय-लोउत्तर-सयल-सत्थ- परमत्थ- कहण-लद्धजसो । मोढेरम्म पुरम्मी विहरंतो अन्नया पत्तो तम्मि निय- सिहर उत्तुंगिमाए पडिभग्ग-सूर-रह-मग्गं । सिरि- वीरनाह- तणुमाण- पडिम- समलंकियं रम्मं । । विज्जर जिणालयं जं च हरइ भवियाण पाव- पब्भारं चितियमेत्तं पि हु किं पुणो तयं भावओ नमियं जस्स य नयाण भवियाण कुणइ सन्निज्झमुत्तमं निच्चं सिरि[ बंभसंति] [50B] देवो निम्मल - सम्मत्त - गुण-धारी तं वंदिऊण सूरी भिन्नम्म जिणालयस्स ठाणम्मि । रयणीए तो सुत्तो पिच्छइ सुमिणं इमं परमं जह वद्धमाण-जिण-गिह- सिहरग्गे उल्ललेवि भूमी । चडिओ सीह- किसोरो हेलाए सुंदरावयवो १. संभमइ । २. लज्जियओ । Jain Education International - For Private & Personal Use Only ॥३८५ ॥ ॥३८६ ॥ ॥३८७ ॥ ॥ ३८८ ॥ ॥३८९ ॥ ॥३९० ॥ ॥३९१ ॥ ॥३९२ ॥ ॥३९३ ॥ ॥३९४ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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