Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 42
________________ ॥३६५ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय ३५ अजियजसो त्ति पसिद्धो इओ य मल्लेण मुणिय मालिन्नं । निय-दंसणस्स तह निय-गुरु-परिभवं तत्तो ॥३६३॥ भरुयच्छे गंतूणं पनविओ नरवई तओ तेणं । बुद्धाणंदं सद्दाविऊण ठविया ठिई सा उ ॥३६४॥ तो भणियं थेरेहिं पढमं को. . . . . .[47.B] मुणिउं । बुद्धाणंदो जंपइ एयस्स गुरु वि जेण मए जित्तो तो का गणणा इमम्मि बालम्मि होउ एयस्स । पढमो वाओ ति थेर-सम्मए भणइ मल्लो त्ति ॥३६६॥ बहुविय-वियप्प-पडिभंग-संकुलं पुव्व-पक्ख-मइ-गुविलं । थिर-वियडक्खर-गंभीर-भारईए दिणे छच्छ ॥३६७॥ सत्तम-दिवसस्संते जंपइ अणुवाइय दूसउ ताव । एयं बुद्धाणंदो त्ति वोत्तु मोणं ठिओ मल्लो ॥३६८॥ तं सोउं सट्ठाणे पत्ता सव्वे वि वाइया लोया । बुद्धाणंदो वि गओ रयणीए चिंतई जाव ॥३६९ ॥ तं मल्लवाइ-भणियं वियप्पमालाऽऽडवीए ता भुल्लो । संखुद्धो ठियए णंदावेउं दीवयं तत्तो ॥३७० ॥ उवरि[48.A]गाए पविसिय दिप्पइ-भित्तीए वायणा भणियं । अणुवायत्थं बहुविह-वियप्पमालं तह वि मूढो वयप्पमाल तह वि मूढो ॥३७१ ॥ नो सरइ किंपि भणियं चिंतइ तो कह निवस्स अत्थाणे । जंपिस्समहं घोप्पेण तत्थ पंचत्तमावन्नो ॥३७२ ॥ मिलिए य सभा-लोए रन्ना भणियं न आगओ एत्थ । बुद्धाणंदो तो तं गवेसिउं झति आणेह ॥३७३॥ १. गुर २. ते ३. अणुवईय दूसऊ ताव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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