Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 41
________________ ३४ मल्लवादि-कथानक पीडिज्जिसि तं तम्हा अम्हुवरोहेण विगइ-परिभोगं । कुणसु तओ तेणुत्तं तुम्हुवरोहेण तेणुत्तं ॥३५२॥ पारणए चउम्मासस्स एव वोत्तूण वलहि-आसन्ने । गिरिहडल-गिरिगुहाए ठिओ तयं चेव चिंतंतो ॥३५३॥ नयचक्क-सिलोगत्थं पुणो पुणो साहुणो तेहिं गंतुं । पडियग्गंती तं भत्त-पाणमाईहिं तत्थठियं' ॥३५४ ॥ [46.B] आराहेइ य संघो सुयदेवि पूयणाइणा निच्चं । दिनुवओगा मल्लं रयणीए सा इमं भणइ । ॥३५५ ॥ के मिट्ठा तेणुत्तं वल्ला पुण भणइ देवया एवं । छहि मासेहिं गएहिं केणं ती घय-गुलेणुत्तं ॥३५६॥ एयस्स अहो मङ्-पगरिसो त्ति चिंतेवि रंजिया देवी । जंपइ मग्गसु भो मल्ल इच्छियं तेण तो भणियं ॥३५७॥ जइ देवि महं तुट्ठा तो तं नयचक्क-पोत्थयं देसु ।। देवी जंपइ पढमा सिलोगओ चेव तं होही ॥३५८ ॥ पुब्विल्ला सविसेसं तुझं नयचक्क-पोत्थयं वोच्छं ।। जाणाविउं च एयं संघस्स गया लहुं देवी ॥३५९॥ तो मल्ल चिल्लओ वि य विरईय [47.AJ-नयचक्क-माहप्पो । लद्ध-जसो संघेण पवेसिओ वलहि-नयरीए ॥३६० ॥ आणाविओ य सूरि तेण वि वायाविऊण पुव्वगयं ।। अजियजस-जक्ख-मल्ला निवेसिया सूरि-पयवीए ३६१ ॥ जाया तिनि विजिय-अन्नवाइणो वाइणो पिहियकित्ती ।। अजियजसेण विरइओ पमाण-गंथो निओ सो य ॥३६२ ॥ १. ० ट्ठियं । २. सुयदेवी । ३. मिओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114