Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 39
________________ ३. मल्लवादि-कथानक [44.A] ॥ सांप्रतं मल्लवादि-कथानकमुपवर्ण्यते ॥ अस्सावबोह-तित्थोवसोहियं अत्थि एत्थ सुपसिद्धं । भरुयच्छं नाम पुरं अणेय-विउसाण आवासं ॥३३० ॥ तत्थत्थि जिणाणंदो सूरी भिक्खू य तत्थ महवाई । बुद्धाणंदो नामेण अन्नया तेणिमं भणियं ॥३३१ ॥ जो वायम्मि जिणेही तस्स इहं दरिसणेण ठायव्वं । नीहरियव्वं इयरेण सूरिणा सह कओ वाओ ॥३३२ ॥ भवियव्वया-निओएण हारियं कह वि सूरिणा तत्थ । तो नीसरिओ सूरी संघेण समं गओ वलहिं सूरिस्स 'दुल्लहदेवी भगि[44.B]णी तस्सेय वर-सुया तिन्नि । अजियजस-जक्ख-मल्ला तेहिं समं सा उ पव्वइया ॥३३४॥ तो सूरि-पभावेणं समत्थ-गुण-संजुया तओ जाया । समुदाएणं 'सूरिं विनविउं पोत्थयाईणं ॥३३५ ॥ कज्जाणं चिंताए ठविया सव्वाण सम्मय त्ति तओ । निय-गुण-माहप्पेणं जायइ गरुयत्तणं सुयणे ॥३३६ ॥ विउसीकया य ते वि य समत्थ-सत्थेसु सूरिणा खुड्डा । मोत्तूणं पुव्वगयं तहा य नयचक्क-गंथं च ॥३३७॥ जम्हा सूरिवरेहिं उद्धारो बारसारओ बीओ । गंथो नयचक्कस्सा पमाणवायस्स पुव्वस्स ॥३३८ ॥ देवकय-पाडिहेरस्स तस्स अरयाण मूल-पज्जते । [45.A] सव्वाण वि गहणम्मी चेइय-संघाण वर पूया ॥३३९ ॥ १. दुल्लहेवी २. सूरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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