Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text ________________
प्रबन्ध चतुष्टय
सोऊं चेमं सूरी-गुणाण उक्कंठियम्मि सयल-जणे । पालित्तयसूरी झत्ति उट्ठिओ एव जपंतो
॥३२४ ॥
भो भो मरिडं पि महं इ[ 43. B]मेण पंचाल - सच्च-वयणेण । ओसह- तुल्लेणं जीविओ तओ मउलिओ सो य
॥३२५ ॥
जाओ पहि-हियओ संघो उण राइणा इमं सोउं । आणत्तो निव्विसओ पंचालो सूरिणा धरिओ
दट्ठूण तारिसं तं परोवयार- ज्जुयं पहुं सो वि । ताण समीवे जाओ सावगो कम्म-विवरेण
इय एवमाइ बहुहा काउं निय-दंसणस्स माहप्पं । जाणित्ता चूडामणि- जायगमाईहिं नियमाउं
कहिऊण तयं संघस्स करिवि कालं सुराण नयरीए । संपत्तो धवलेउं जसमिणमो कित्ति - कुच्चेणं
॥छ । पालित्ताचार्य - कथानकं समाप्तं ॥ छ ॥
Jain Education International
३१
For Private & Personal Use Only
॥३२६ ॥
॥३२७ ॥
॥३२८ ॥
॥३२९ ॥
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114