Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 36
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय जाणावियमागमणं पहुणो तं संकरेण नरवइणो । सो चिय हरिस-विसेसा कारेउं हट्ट-सोहाई ॥३०२॥ नयरे महूसवं तो चलिओ जं सूरि-संमुहं राया । सप्परिवारो ता तत्थ आगओ विहप्फई विउसो ॥३०३ ॥ जंपेइ परिक्खिस्सं बुद्धी पालित्तयस्स देवाहं । अज्जेव य तो रन्ना [41.B] परिक्खसू एवमुल्लविओ ॥३०४ ॥ तो भणइ को वि विज्जइ परिवारे तुम्ह देव एत्थ नरो । जो जंभावंतो वि हु न छडुई' भरिय-भायणओ ॥३०५ ॥ हत्यट्ठियओ उदयाइ राइणो भणियमत्थि ता एत्थ । आकारह त्ति भणिए थिर-हत्थो हीरओ नाम ॥३०६॥ आकारिओ निवेणं पयंसिओ विहप्फइस्स विउसस्स । तेणावि सबहुमाणं सम्मांणेउं पयत्तेण ॥३०७॥ भणिओ सो वट्टमिणं चिलीण-घय-पूरियं तुमं गंतुं । सूरिस्स भद्द दंससु भणसु य जह तुम्ह विउसेहिं । ॥३०८ ॥ पेसियमिणमो मंगल-कएण इय भणिय पेसिओं सिग्छ । [42.A] तेण वि तहा कयम्मी विनायं सूरिणां तं च ॥३०९ ॥ वट्ठल-आधार-गुणाउ नयरमेयं मईए जणणाउ (?) । घय-तुल्लेण पंडिय-जणेण पुत्रं न उ नाम ॥३१० ॥ जह एत्थ वट्टयम्मी अवगासो नत्थि अन्न-वत्थुस्स । तह तुज्झ वि नो होही इमम्मि नयरम्मि पुनम्मि ॥३११ ॥ दाय-पडिदायणत्थं संमुह-संवेहगाइ-गुण-भावा । सूइ-समो जो विउसो सो सुभरे वि इमम्मि संमाइ ॥३१२ ॥ १. च्छडुई २. . याउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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