Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 40
________________ ॥२ प्रबन्ध - चतुष्टय कायव्वा एस ठिई बहु पुरिस समागय त्ति इय सुणिउं । मङ्-मेहा-संपन्नं दणं चेल्लयं मल्लं ॥३४०॥ अपुव्वं पिव सयमेव वाइही एस पोत्थयं एयं । ता अज्जिया-समक्खं विहरिउकामो तयं भणइ ॥३४१ ॥ वाएज्जसु मा चेल्लय एवं नयचक्क-पोत्थयं एवं । वोत्तुं मोत्तुं तं अज्जिया-जुयं विहरिओ सूरि ॥३४२ ॥ कज्जेणं केण एवं निवारियं मज्झ चिंतिउं विरहे । निय-अज्जियाए मल्लेण पोत्थयं छोडियं तस्स ॥३४३॥ घेत्तूण पढम-पत्तं करम्मि तो [45.B] वाएइ इमो तत्थ । एग सिलोगो निस्सेस-सत्थ-अत्थस्स संगाही ॥३४४॥ विधि-नियमभंग-वृत्ति-व्यतिरिक्तत्वादनर्थकवचोवत् । जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधर्म्यम् । ॥३४५ ॥ जावेयं सो चिंतइ निमीलियच्छो झड त्ति ता हरियं । सुयदेवयाए अविहि त्ति पोत्थयं पत्तयं चेव ॥३४६ ॥ हरियम्मि तम्मि मल्लो विसन्न-चित्तो विलक्ख-वयणो य । जा चिट्ठइ ता पुट्ठो जणणीए किं तुमं अज्ज ॥३४७ ॥ दीससि विद्दाण-मुहो सब्भावे साहियम्मि तो तीए । समुदायस्स निवेइयमिणमो तेणावि भणियमिणं अन्नत्थ नत्थि एवं कत्थइ नयचक्क[46.A] पोत्थयं तम्हा । नेयं भव्वं वोत्तुं महाविसायं गओ संघो ॥३४९॥ तो मल्लेणुल्लवियं नयचक्कुमाहिएण सयकालं । होहामि वल्ल-भोइय गिरि-गुह-वासी विणा एयं ॥३५० ॥ इय सोउं समुदाओ अहिययरं दुक्खिओ मणे जाओ । मल्लस्स चलण-लग्गो विनवई वायपित्तेहिं ॥३५१॥ ॥३४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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