Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 21
________________ १४ पादलिप्तसूरि-कथानक तइए जामे उत्तर-दिसाए अहिया विसेसओ' पुण सो । भणिओ सूरीहिं तहा कहियव्वं जह विसंवयइ ॥१३६ ॥ किंचेत्थ जेण पुण पुण मुणिणो नो पुच्छई इमो राया । अन्नह इरियावहिया-पलिमंथो धम्म-वाघा[22.A]ओ ॥१३७ ॥ सद्दाविएण रन्ना सूरीहिं पेसिओ तओ सीसो । भणिओ य तेण राया न मुणिज्जइ अवितहं किंचि ॥१३८॥ तह वि इओ पंचम-दिवसे तइयाए पोरिसीए उ । होही वुट्ठी दक्खिण-दिसाए सा किंतु विउलयरा ॥१३९ ॥ इय भणिउं सट्ठाणे पत्तो सो चेल्लओ तओ वुट्ठी ।। जाया तम्मि दिणम्मी रन्ना सो सद्दिउं वुत्तो ॥१४० ॥ एवं सपच्चए वि हु तुम्ह निमित्ते दिसाए किं एस । जाओ' विवज्जओ भणइ चेल्लओ तो इमं वयणं ॥१४१ ॥ जह राय मए भणियं पुव्वि चिय जह न नज्जई सम्मं । तह वि हु तुम्ह निबंधेणं साहियं किंचि तं सुणिउं ॥१४२ ॥ जाया निवाइ-लोया तं पइ मंदा[22.B] यरा तओ खुड्डो । सट्ठाणे संपत्तो सूरीणं साहए सव्वं ॥१४३ ॥ तह जत्थ निरूविज्जंति विविह-विज्जाओ तह वरा मंता । विजापाहुडं नाम तं भन्नइ तत्थ वी कुसलो सिरि-पालित्तयसूरी जह एत्थं अज्ज-खउङ-आयरिया । तस्स वि संखेवेणं वनिमो संपयं चरियं ॥१४५ ॥ अमुणिय-परचक्क-भयं भरुयच्छं नाम पट्टणं अत्थि । सिरि-मुणिसुव्वय-पडिमा-पक्खालिय-सयल-कललोहं ॥१४६ ॥ १. विसेसोउ पुण २. जोउ ॥१४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114