Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 19
________________ १२ पादलिप्तसूरि-कथानक जीवाजीवुप्पत्ती तत्थ य दव्वाण जोगओ पढमे । . वन्निज्जइ तक्कुसलो सूरी जह रुद्ददेव पहू ॥११५॥ तं. जहा - पंसुपुरे नयरम्मी आसी सिरि [19.B] रुद्ददेव आयरिओ । गीयत्थाणं साहूण कहइ सो जोणिपाहुडयं ॥११६ ॥ तत्थ य मच्छुप्पत्ती एगते संठिओ तओ सा' य । एगेण धीवरेणं अंतरिएणं सुयं सो य । ॥११७॥ निय-गेहे गंतूणं विनासइ जाव गरुयरा मच्छा । जाया तेण वणिज्जेण पउर-दविणो लहुं जाओ ॥११८ ॥ तो सूरि-वंदणत्थं पत्तो सो सूरिणो वि अन्नत्थ । विहरेउं संपत्ता चलण-विभागेण तत्थेव ॥११९ ॥ नमिउं तो बहुमाणो जंपइ तुम्भं पसायओ' विउला । जाया मज्झ समिद्धी तो आएसं नियं देह ॥१२० ॥ जेणं करेमि तत्तो भणियं सूरीहिं कह तओ तेण ।। कहिओ निय-वुत्तंतो तो सूरीहिं उल्लविओ ॥१२१ ॥ किं भद्द [20.A] तए कहियं अन्नस्स नेय सो आह । सूरीहिं तओ निय-माणसम्मि चिंतेवि बहु एवं ॥१२२॥ गुरु-पावमहो एवं जम्हा पुत्ताइ-संत-गयं तु । होही बहु दोसयरं ता जुत्तं थोव-दोसं ति ॥१२३॥ हणणं एयस्स तओ भणियं कोमल-गिराए तं भद्द । मह पुत्तो जस्स तुहं ममोवरिं एरिसा भत्ती ॥१२४ ता तह करेमि संपइ जह तं रयणाहिवो लहं होसि । तेणुत्तं सुपसाओ कहिओ से सूरिणा जोगो ॥१२५। १. सो २. . यउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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