Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text ________________
२४
पादलिप्तसूरि-कथानक तुटेणं निस्संकं तत्थागमणम्मि पंच-महसद्दो । अप्फालिओ तह जहा सद्दमंतं पुरं जायं
॥२४६॥ अवि य - मद्दल-करडिय-सुपडह-भाणय-संखाइया महासद्दा । हत्थवइत्तण-उभय-सपओग (?) मुहेहिं वज्जति ॥२४७॥ संपाडियग्घ-वाया-पडिवत्ती जाव तत्थ उवविट्ठो । पालित्तयसूरी ताव तत्थ तस्साणुभावेण
॥२४८॥ जंगम-तित्यमिहागयमिय-लोय-पवायओ तहिं राया । पत्तो तेणं आणदिएणं सो पूइओ सूरी
॥२४९ ॥ वर-वत्थमाइएहिं [33.A] संघेणं तह य सेस-लोएण । पहुणा वि तयं दिन्नं अग्गीणं बंभणाईणं
॥२५०॥ तत्तो साहुक्कारो उच्छलिओ सूरिणो नयर-मज्झे । नमिऊण सविणयं तं जंपइ राया सबहुमाणं
॥२५१ ॥ किं अम्हे मूलजाया जमित्तियं नावलोइया कालं । तुब्भेहिं तओ जंपइ सूरी महाराय निसुणेसु
॥२५२॥ विहरिउकामा वि इहं नो मुक्का मन्नखेड-संघेण । संघाइक्कमणं पुण दोसयरं मूलजायाओ
॥२५३॥ अज्ज उणपहर देसे तित्थाणं वंदणथमम्हेहिं । विण्णत्तेणं संघेण जंपिया जइ पुणो एत्थ
॥२५४॥ दिवसस्स दु-जामंते आगंतुं [33.B] कुणह भोयणं तुब्भे ।। तो वच्चह अम्हेहिं पडिवनं ता इओ राया
॥२५५ ॥ उज्जित-महुर-सत्तुंजएसु तित्थेसु वंदिउं देवे । गंतव्वं तत्थ पुणो सोऊणेवं तओ राया
॥२५६॥ जंपइ चलण-विलग्गो सगग्गयं नेय सूरि जोग्गो हं । तुम्हं निरंतर-दसणस्स तह वि कल्लं दिणारब्भ ॥२५७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114