Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ पादलिप्तसूरि-कथानक वोत्तूणेमं भामइ दाहिण-देसाउ जाव वामं तं । विप्पाण पंतियाए कणवीर-लयं जवेमाणो ॥२२४॥ मंतक्खराइं पुण पुण ता सीसाइं तड त्ति पडिया[30.BJई । दह्रण इमं राया चमक्किओ ते य खलभलिया ॥२२५ ॥ मिच्छादिट्ठी लोया दीणा पुरिसेस-बंभणा मिलिउं । संघ-चलणेसु पडिया दीणमुहा एव जंपंति ॥२२६ ॥ चुक्का अम्हे तम्हा काऊण दयं खमेह अवराहं । तो संघेणाइट्ठो सो चेल्लओ कुणसु रक्खं ति ॥२२७ ॥ अणुग्गह-लयाए तं चिय विवरीयं कुणइ जाव तज्झत्ति । उप्फिडिउं सव्वाणि वि ताणि य सीसाणि लग्गाणि ॥२२८ ॥ जिण-दंसणस्स जाया तत्थ अईवुनई तहा राया । दंसण-भत्तो जाओ तत्थ वि पालित्तओ कुसलो ॥२२९ ॥ अपि च - जेणं दिट्ठ सुओ वा सोहग्गाएयया (?) कला-निलओ । [31.A] पालित्तयसूरी सो न तं विणा निव्वुई लहइ ॥२३० ॥ रायामच्चाईहिं सययं सेविज्जमाण-चलणस्स । जस्स न लहंति वोत्तुं कज्जे वि हु अंतरं मुणिणो ॥२३१ ॥ तो तयणुग्गह-हेडं पालत्तीतेणं विरइया भासा । गुरु-पारंपज्जेणं विनेयव्वा इमा सा उ ॥२३२ ॥ गुरुवो लहवो य सया चक्कावित्तीए अक्खहं डष्ट्रा । रैफं लोल्याडढणं लवयाभाइयताईहिं (?) ॥२३३॥ तम्मि समए समिद्ध-दक्षिण-देसम्मि मन्नखेड-वरं । [31.B] तह लाङ-देस-मज्झे भरुयच्छं तह सुरट्ठाए ॥२३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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