Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 28
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय नामेण दाहडो त्ति य सो पुण विज्जाइएहिं कयकुमई । पभणइ संघं कीरइ तुब्भेहिं जा उ पडिवत्ती ॥२१३ ॥ निय-सूरीणं तं कुणह बंभणाणं तओ य संघेणं । भणियं पुच्छिज्जंतं एयं नणु बं[29.B]भणा एए ॥२१४॥ जइ कत्थइ भणियमिणं वेय-पुराणाइएसु सत्थेसु । रना भणियं किं एत्थ तुम्ह कज्जं वियारेण ॥२१५ ॥ निस्संदेह एयं कायव्वं एवमेव जइ तुब्भे । कुसलं इच्छह तत्तो 'निब्बंधं नाउं संघेणं ॥२१६॥ सव्वाण संमएणं काहामो एवमेव जंपेउं । सट्ठाणे संपत्तो आलोचइ किमिहमिय भणिए ॥२१७॥ देविंदो नामेणं विज्जासिद्धो पयंपई खुड्डो । जइ संघो आएसं देइ महं ता वरं चोज्जं ॥२१८॥ पकरेमि अहं तो सो संघेणऽणुजाणिओ गहिय दो वि । विज्जाभिमंतियाओ कणवीर-लयाओ तो चलिओ ॥२१९ ॥ संघेण समं निव-मंदिरम्मि दिट्ठा य तत्थ उवविट्ठा ।। पवरेसु [30.A] आसणेसुं विप्पाणं पंतिया तत्तो ॥२२० ॥ मिलियम्मि सव्व-लोए नरवइणा जंपियं कुणउ संघो । वंदणयं विप्पाणं भणियं तो चेल्लएणेयं ॥२२१ ॥ चिट्ठउ नरिंद संघो ममावि एए ण वंदणं सोढुं । सक्का तओ पयंपइ भूमिपई किमिह विविहेहिं ॥२२२ ॥ ३पट्ठत्तरेहिं जम्हा जंगमदेवा दिया इहं सव्वे । इय सोउं सो जंपइ ता पेच्छह कोउगं भो भो ॥२२३॥ १. निबंधं २. पंतीया ३. वडु ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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