Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 26
________________ प्रबन्ध चतुष्टय तुब्भेहिं गएहि तओ भणियं सूरीहिं भीह मा वोत्तुं । वडुकय- देवहरे पत्तो चिट्ठति तस्संते दो जलदोणीओ महालयाओ गुरु सिलमयाओ लोयाणं । मज्जण-कएणं ताहिं समयं अवलोइडं' जक्खं सपरिवारं जंपइ भो भो भरूयच्छ-पट्टणे अम्हे । गच्छिस्सामो जा चलइ जंपिउं एव सो थोवं ता ेवडुकय-पडिमा अन्नाणं वंतराण प[27. B] डिमाओ । ताओ वि जल- दोणीओ चलियाओ खडहडंतीओ जंति य तप्पुट्ठीए ताणं मोयणकएण लोगेणं । विन्नत्तो आयरिओ जाहिंति मए समं भणियं सोऊणेमं लोगो खरतरयं निवडिऊण चलणेसु । जंपइ महा-पसायं करिउं अम्हाण पहु मुंच तो ताओ पडिमाओ मुक्काओ कारिऊण पइबंधं । जिणसासणस्स कइय वि कायव्वो नेय उवसग्गो जो मम सरिसो पुरिसो होही एयाओ सो स-ठाणम्मि । नेहि त्ति जंपिऊणं पत्तो भरूयच्छ-नयरम्मि जाणिय- वृत्तंतेणं निओइया वेज्जसामिणी देवी । तेणं विज्जाणं चक्कवट्टिणा तीए तो गंतुं सूरिस्स पोत्थिया सा आणेउं अप्पिया तओ ताणं । भिक्खूणं पत्ताणं इंताणं सिला कया अग्गे १. अवलो २. वड्डक्कय ३. वइ ० Jain Education International ० १९ For Private & Personal Use Only ॥१९१ ॥ ॥१९७॥ लोय-समक्खं [28.A] ताओ जलस्स दोणीओ आणिउं मुक्का । गुडसत्थ-नयर बाहिं भणियं तो सूरिणा एवं ॥१९८॥ ॥१९२॥ ॥१९३॥ ॥१९४॥ ॥१९५ ॥ ॥१९६ ॥ ॥१९९ ॥ ॥२०० ॥ ॥२०१ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114