Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 30
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय वलहिपुरं गिरिनयरं च सूरसेणाए तह वरे देसे । सिरि-महुराउरि-नयरी विज्जंती तेसु वर संघा ॥२३५ ॥ पर मनखेड-राया सुट्ट दुराराहओ न सो किंचि । अवगरइ संघस्स सूरिगुणावज्जिओ धणियं ॥२३६॥ अन्नत्थ विहरिउं तो न देइ सूरीण ताण तस्संघो । अत्थि इओ सोरटे धाउवायम्मि कयसिद्धी ॥२३७ ॥ ढंकस्स पव्वयस्सा उवरि ढंकउर-नयर-कयवासो । [32.A] नागज्जुणो त्ति नामेण वंदओ तेण दाणेण ॥२३८ ॥ सोरट्ठदेसवासी निवाइ-पमुहो वसीकओ लोओ । सो सेस-दरिसणाई मन्नेइ निप्पभावाई ॥२३९॥ भरुयच्छे महुराए कुणंति धिज्जाइया जिणिंदाण । ण्हवणाइणं वि' विग्घं तो भरुयच्छाइ-संघेहिं पालित्तयसूरीणं सिग्घं जाणावियं इमं सयलं । तेहिं तओ संदिळं कायव्वा कोमुई-महिमा ॥२४१ ॥ भिरिहिरिया-दिवसम्मी तुब्भेहिं जेण पेसिया अम्हे । आगच्छामो तुरियं बहुमन्नेउं इमं वयणं ॥२४२ ॥ पारद्धा सा तेहिं कत्तिय-सुद्धाए पडिवयाए दिणे । जिण-जत्ता पालित्तयसूरी वि हु मनखेडम्मि ॥२४३ ॥ संघावेइय-कज्जो काऊणं पउण-पहर-ज[32.B]ण-जत्तं ।। काऊण पाय-लेवं भरुयच्छे झत्ति संपत्तो ॥२४४॥ दिट्ठो सो संघेणं हरिस-विसप्पंत-नयण-जुयलेणं । अस्सावबोह-चेइय-मज्झायाओ तओ तेण ॥२४५ ॥ १. टंकओरमयर • २. ण्हवणाई ण वि ॥२४० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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