Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ प्रबन्ध चतुष्टय कारिस्समहं जिणमंदिरम्मि एयम्मि पुन्निमं जाव जत्तं तं च गुरूणं पसायओ जइ इहं तुब्भे आगच्छह तो मन्ने अहयं अप्पाणमित्थ सकयत्थं । इहरा कंकिल्लि पिव अहलं मन्नामि निय-जीयं तो सिरि- पालित्तणं भणियं भो पवयणुन्नई सययं । कायव्वा ता तुब्भं संमयमेवं करिस्सा [ 34.A] मो एवं भणिए रन्ना उल्लवियं अम्हऽणुग्गहो एसो । तो सूरी वलभीए संपत्तो तत्थ वी काउं - दंसण - समुन्नई तो 'सेत्तुजुज्जित - वंदणं काउं । गिरिनयरम्मि तहेव य ढंकपुरम्मी समणुपत्तो तम्मि वि करेइ तह चिय विमलं जिण - दंसणुन्नई नवरं । तत्थायाओ चेईहरम्मि नागज्जुणो सो य मन्त्रावित्ता सूरिं विणएणं आसमम्मि निययम्मि । नेइ तओ कारवियं सूरीणं चलण-सोयं ति भणियं च सबहुमाणं जाया [ 34.B] तुह दंसणे पहू चित्तस्स धिई ता इह आगंतुं कोमुई जाव वच्चेज्ज मए समयं निय-चेईहरम्मि मन्निउं वयणं । तस्स तओ पालित्तो महुरउरीए समणुपत्तो काऊण पवयणुन्नई तत्थडिओ मन्त्रखेड-नयरम्मि । पत्तो एवमणुदिणं आगच्छंतस्स सूरिस्स Jain Education International तं चलण-सोय-नीरं उस्सिघिंतेण अणुदिणं नायं । सत्तोत्तर-मूल-सयं ताणं पयलेव- दव्वाण १. सेतुंसु । २. टंक० । ३. नागज्जू For Private & Personal Use Only ४. प्परमा २५ ॥२५८ ॥ ॥२५९ ॥ ॥२६० ॥ ॥२६१ ॥ ॥ २६२ ॥ ॥२६३ ॥ ॥ २६४ ॥ ४ परमा । ॥२६५ ॥ ॥२६६ ॥ ॥ २६७ ॥ ॥२६८ ॥ www.jainelibrary.org

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