Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 33
________________ पादलिप्तसूरि-कथानक नागज्जुणेण न उणो विनायं मइमया वि एक्कमिणं । तंदुल [35 अप्राप्य . . . . . . . . . . . . . . . ॥२६९ ॥ . . . . . . . [36.A] वाहणो राया । वरिसे वरिसे गंतुं भरुयच्छे रोहए सो उ ॥२७० ॥ कोस-समिद्धं नरवाहणम्मि तम्मि य पुरम्मि काऊण । वासा-रत्तं अह अन्नया य घोसावियं एयं ॥२७१ ॥ नरवाहणेण रन्ना जो किर सालिस्स राइणो एत्थ । भिच्चाणं हत्थं वा पायं वा छेत्तुं आणेइ ॥२७२ ॥ दम्माण लक्खमेगं तस्स य दाहामि मुणिय तस्सेयं । धण-लोहेणं सुहडा मारेउं सालिराहणस्स भडे ॥२७३ ॥ दंसंति सो वि ताणं देइ धणं ते वि कइय वि भडेहिं ।। मारिजंती इयरेहिं न उण सो देइ ताण धणं ॥२७४॥ एवं बहु-पुरिस-खए जाए [36.B] अइकाइएण नरवइणा । सिरि-सालिवाहणेण भरुयच्छं गंतुकामेणं ॥२७५ ॥ परिवारस्स न कहिउं पत्थाणं रेणु-गुंडण-भएण । थुक्कियमत्थाणस्स वि मंडलियाए तयं दटुं ॥२७६ ॥ चिंतइ निव-पडिग्गह-धारिणी खुज्जा-विलासिणी नूणं । गंतुमणो भूमिवई जत्ताए तीए तो सिटुं निव-जाणसालयस्स नियस्स मित्तस्स तेण तो सिग्धं । गड्डीरयाइ विहियं वहमाणमणागयं चेव ॥२७८ ॥ दट्टण तयं सेसो वि खंधवारो समुट्ठिओ झत्ति । गंतुं पहे पयट्टो राया वि य एवबुद्धीए ॥२७९ ॥ १. नागज्जूणेण २. . धारिणीए ॥२७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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