Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 25
________________ १८ पादलिप्तसूरि-कथानक किमणेणं अ[26. A]णिट्ठेणं भिक्खाए भोयणाण चिंतेइ । ता तह करेमि जायइ जह' सिद्धं भोयणं सययं उक्कडतरयं तम्मी काले बुद्धाण दरिसणं तत्थ बुद्धोवासग-सड्डा दिंति जह - चिंतियं सव्वं 1 सो ताण विहारंमी गहाय तं पोत्थियं गओ तेहिं । बहुमन्निओ य जाओ तल्लिंगधरो तओ तेण भणिया उवासगा जह तुम्हाण गिहेसु आगमिस्संति । भिक्खूणं पत्ताई सयमेवं सुणिय सेहं पि संमज्जिवलित्ते विहियचउक्के सुहे गिह-पए । रईयाई आसणाई तेणं विज्जा पभावओ वत्थेणं पिहियाई भिक्खुणं [26.B] कप्पराई तप्पुरओ । 'सुक्किल - वत्योच्छइयं पट्ठवियं कप्परं पवरं गयणेण ताणि गंतु चिट्टंती आसणेसु तेसु तओ । भरियाणि जहा- जोगं मणुन्न- कूराइ-वत्थूणं आणिज्जंति विहारं खुड्डेणं तं च अइसयं लोगो । उड्ढमुहो दट्ठूणं जाओ तद्दंसणाणुओ दट्ठूण सयं निय- दंसणस्स ओहावणं तु संघेणं । संघाडो पेसविओ सूरीण अज्ज-खउडाणं भणियं तेणं भयवं जयम्मि तुम्हारिसेहिं पुरिसेहिं । विज्जंतेहिं इय दंसणस्स ओहावणा तिव्वा तो एह लहुं तेहिं वि जावुत्ती पुच्छिओ य सो संघो । ते विभणियं [27. A] वडुकओ अम्ह उवसग्गकारीय १. तह २. वुड्ढाण ३. सुकिल Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥१८०॥ ॥१८१ ॥ ॥ १८२ ॥ ॥१८३॥ ॥ १८४ ॥ ॥ १८५ ॥ ॥१८६ ॥ ॥१८७ ॥ ॥१८८ ॥ ॥१८९ ॥ ॥१९० ॥ www.jainelibrary.org

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