Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ पादलिप्तसूरि-कथानक तेण य दंसण-कज्जे गंतव्वं तुरियमेव तो चलिओ । छडहड परिवारेणं आणविओ' पच्छिवाल मुणी ॥१५८ ॥ खुड्डेण समं भई वट्टेज्जह सो यजंपिओ मा [24.3] तं । छोडिज्जसु अम्हाणं कवलियमेयं ति तो पत्तो ॥१५९॥ गुडसत्थे नयरम्मी वडुकय-चेइयम्मि गंतूण । पढम चिय तं पइ सो जंपइ विज्जाण चक्कवई ॥१६० ॥ गिण्हसु अरे इमाओ उवाहणाओ महं तओ जक्खो । गिण्हेउं उवलंबइ निय-कन्नेसुं तओ सूरी ॥१६१ ॥ वसहीए गओ सव्वायरेण संघेणं विहिय-सम्माणो । उवसंतो साहूणं सव्वाणं झति उवसग्गो ॥१६२ ॥ वडुकओ देवच्चियाए दिट्ठो इओ पहायम्मि । कन्नोलंबिय-वाहण-निय-सीसं डगडगावितो ॥१६३॥ तीए य सदिऊणं पयंसिओ देवपूयगस्स इमो । [24.B] कहियायरिय-कहाए सो वि तहा दटुं तं रुट्ठो ॥१६४॥ घेत्तूण बहुं लोयं समागओ जत्थ जत्थ तं जक्खं । जोयंति तत्थ तत्थ य निगुडित्ता दरिसई पुंदे ॥१६५ ॥ जक्खो तओ य लोएण साहियं राइणो तयं सव्वं । तेणावि सयं दिढे रुटेणं सूरि-हणणत्थं ॥१६६ ॥ दप्पिट्ठ-दुट्ठ-निय-मुट्ठि-घाय-निद्दलिय-सेल-संघाया लउडाइ-वावङ-करा निय-पुरिसा पेसिया ते उ ॥१६७॥ हंतुं लग्गा सूरिं दढ-प्पहारेहिं सूरिणो घाया । विज्जा-सामत्थेणं संकमिया राय-उवरोहे ॥१६८॥ १. आणविउं २. जंपिउं सा तं। ३. वड्डकूय ० , ४. वड्डकूरओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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