Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 22
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय १५ तम्मि य विज्जापाहुङ-कुसला सिरि-अज्ज-खउङ-आयरिया । ते उण विज्जासिद्धा वि जेण विज्जाइ-कुसलाणं ॥१४७ ॥ जेसिं नमोक्कारेणं समं सिद्धी पोत्थयाइऽपढिए वि । विज्जा [23.A] वि जम्मि जायइ सो भन्नइ विज्जसिद्धो त्ति ॥१४८ ॥ सूरीण ताण एगो विज्जावालो ओचूणओ चिल्लो । पइदियह चिय चिट्ठइ सन्निहिओ धारणा-कुसलो ॥१४९ ॥ अवधारियाओ तेण य सूरि-परावत्तणंसि विज्जाओ । काओ वी कन्नाहेडएण अह नयर-गुडसत्थे ॥१५० ॥ पंडिय माणी को वि विजिओ परिव्वायओ जइ-जणेणं । ता एसो उण मरिउं अद्धीए तत्थ उववन्नो ॥१५१ ॥ गुडसत्थे नयरम्मी वडुकओ नाम वंतरो देवो । उद्धरिसियं च तेणं लोयाणं तत्थ एवं ति । ॥१५२॥ तुम्हाणणुग्गहट्ठा वरउ वडुकओ त्ति नामेण । इयमेयाओ नामं पइट्ठवेह त्ति पुर मज्झे ॥१५३ ॥ लो[23.2] एण वि देवहरं गरुयं काराविऊण सो ठविओ । चउहट्ट-मज्झयारे धरिओ देवच्चओ रन्ना ॥१५४॥ विउला वित्ती दिन्ना जणाण सो कुणइ तत्थ संनेझं । ते वि हु पूयंति तयं कुसुमऽक्खय-धूवमाईहिं ॥१५५ ॥ दिन्न- 'विभंगुवओगो नाउं निययं पराजयं कुद्धो । विविहेहिं रोगेहिं साहूणं कुणइ तो पीडं । ॥१५६ ॥ एयस्स नत्थि अन्नो निग्गह-पडुओ त्ति कलिय संघेणं । आहिंडएहिं सूरी आहूओ अज्ज खउडो त्ति ॥१५७॥ १. सम २. विभंग . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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