Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 20
________________ प्रबन्ध - चतुष्टय जेणुप्पज्जइ सीहो भणिओ सो [20.B] गंतुं भद्द एगते । 'कम्मि वि जलासयम्मी तडट्ठिएणं खिवेयब्वो ॥१२६ ॥ जायंति जेण मुत्ताहलाई रयणाणि पउर-मोल्लाणि ।। सोऊणेवं तुट्ठो स धीवरो नमिय-गुरु-चलणो ॥१२७॥ जह आइटुं करई तत्तो संमुहुट्ठिएण सीहेणं । तिक्ख-नहरेण सिग्धं विणासिओ धीवरो तत्थ ॥१२८॥ जत्थ पुण सउण-जोइस-केवलियमाइयं निमित्तम्मि । सुत्तिज्जइ तं भन्नइ निमित्तपाहुडमिहं सुत्ते ॥१२९॥ तत्थ वि निउणो जाओ सूरी पालित्तओ ज[21.A]हा एत्थ । देविंदो नामेणं आसि जहा चिल्लओ पुचि ॥१३० ॥ सचायं - आसी विलासनयरे राया नामं पयावई सो य । दीहावरिसण-पीडिय-पयासु पुच्छेइ वरिसाले ॥१३१ ॥ आकारिऊण पउरे जोइसिए वरिसिही न वा ते उ । साहिति परं नेय मिलइ किंपि तो सूरिणो रन्ना ॥१३२ ॥ आहूया नामेणं मम्मणसीहा तहिं परिवसंता । वुट्टि-सरूवं पुट्ठा सविणयमिय मुणिय तेहिं पि ॥१३३॥ सुनिरू[21.BJविऊण तुब्भं साहिस्सामो त्ति जंपियं पत्तो । सट्ठाणे देविंदो आइट्ठो तेहिं निय-सीसो नेमित्तविऊ तेण वि केवलियाई निमित्तिओ दिवसो । निर्दृकिया इओ पंचमम्मि दिवसम्मि बहु वुट्ठी ॥१३५॥ १. कम्म २. सुमुहु ० ३. ० माईयं ४. निपुणो ५. ते ॥१३४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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