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पादलिप्तसूरि-कथानक तइए जामे उत्तर-दिसाए अहिया विसेसओ' पुण सो । भणिओ सूरीहिं तहा कहियव्वं जह विसंवयइ ॥१३६ ॥ किंचेत्थ जेण पुण पुण मुणिणो नो पुच्छई इमो राया । अन्नह इरियावहिया-पलिमंथो धम्म-वाघा[22.A]ओ ॥१३७ ॥ सद्दाविएण रन्ना सूरीहिं पेसिओ तओ सीसो । भणिओ य तेण राया न मुणिज्जइ अवितहं किंचि ॥१३८॥ तह वि इओ पंचम-दिवसे तइयाए पोरिसीए उ । होही वुट्ठी दक्खिण-दिसाए सा किंतु विउलयरा ॥१३९ ॥ इय भणिउं सट्ठाणे पत्तो सो चेल्लओ तओ वुट्ठी ।। जाया तम्मि दिणम्मी रन्ना सो सद्दिउं वुत्तो
॥१४० ॥ एवं सपच्चए वि हु तुम्ह निमित्ते दिसाए किं एस । जाओ' विवज्जओ भणइ चेल्लओ तो इमं वयणं ॥१४१ ॥ जह राय मए भणियं पुव्वि चिय जह न नज्जई सम्मं । तह वि हु तुम्ह निबंधेणं साहियं किंचि तं सुणिउं ॥१४२ ॥ जाया निवाइ-लोया तं पइ मंदा[22.B] यरा तओ खुड्डो । सट्ठाणे संपत्तो सूरीणं साहए सव्वं
॥१४३ ॥ तह जत्थ निरूविज्जंति विविह-विज्जाओ तह वरा मंता । विजापाहुडं नाम तं भन्नइ तत्थ वी कुसलो सिरि-पालित्तयसूरी जह एत्थं अज्ज-खउङ-आयरिया । तस्स वि संखेवेणं वनिमो संपयं चरियं
॥१४५ ॥ अमुणिय-परचक्क-भयं भरुयच्छं नाम पट्टणं अत्थि । सिरि-मुणिसुव्वय-पडिमा-पक्खालिय-सयल-कललोहं ॥१४६ ॥ १. विसेसोउ पुण २. जोउ
॥१४४॥
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